त्रिपुरासुर के वध की कथा Hindi Story in Hindi - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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रविवार, 6 अक्तूबर 2024

त्रिपुरासुर के वध की कथा Hindi Story in Hindi

त्रिपुरासुर के वध की कथा Hindi Story in Hindi

त्रिपुरासुर का वध हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण और प्राचीन पौराणिक कथा है। यह कथा देवताओं और असुरों के बीच की संघर्षमयी कथा है, जिसमें भगवान शिव ने अपनी अद्वितीय शक्ति और महादेव स्वरूप का प्रदर्शन किया। त्रिपुरासुर के वध की कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि जब अधर्म और अहंकार बढ़ जाता है, तब ईश्वर की कृपा और शक्ति से उसका अंत होता है।

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त्रिपुरासुर कौन थे?

त्रिपुरासुर तीन असुर भाइयों का सामूहिक नाम है, जो महाबली असुर तारकासुर के तीन पुत्र थे। इन तीनों का नाम था तारकाक्ष, कमलाक्ष, और विद्युन्माली। त्रिपुरासुर ने भगवान ब्रह्मा से कठोर तपस्या करके अमरता का वरदान प्राप्त करना चाहा। जब ब्रह्मा ने उन्हें अमरता देने से इनकार कर दिया, तब उन्होंने यह वरदान मांगा कि वे तीन अलग-अलग नगरों (पुरों) में निवास करेंगे—एक स्वर्ग में, एक पाताल में, और एक पृथ्वी पर। इन तीन नगरों को मिलाकर 'त्रिपुर' कहा गया। उन्होंने यह वरदान भी मांगा कि उन्हें केवल तब ही मारा जा सकेगा जब कोई देवता तीनों पुरों को एकसाथ नष्ट कर सके, और वह भी तभी जब तीनों पुर एक ही सीध में आ जाएं। ब्रह्मा ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दे दिया।


त्रिपुरासुर का अत्याचार

वरदान प्राप्त करने के बाद त्रिपुरासुर ने तीन महान नगरों (त्रिपुर) का निर्माण किया। ये नगर आकाश में, पाताल में, और पृथ्वी पर स्थित थे और उनमें प्रवेश करना देवताओं के लिए भी असंभव था। इन नगरों में रहने वाले असुर अत्यंत शक्तिशाली हो गए और उन्होंने देवताओं के साथ-साथ ऋषि-मुनियों पर भी अत्याचार शुरू कर दिए। उनके अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो गए, और धर्म की हानि होने लगी।


देवताओं की याचना

त्रिपुरासुर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, परंतु ब्रह्मा ने कहा कि त्रिपुरासुर को मारने का सामर्थ्य उनके पास नहीं है। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने भी कहा कि त्रिपुरासुर को मारने की शक्ति केवल भगवान शिव के पास है। अतः सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास गए और उनसे त्रिपुरासुर के अत्याचारों को समाप्त करने की विनती की।


त्रिपुरासुर वध की योजना

भगवान शिव ने देवताओं की याचना को स्वीकार किया और त्रिपुरासुर को मारने का संकल्प लिया। त्रिपुरासुर को मारने के लिए विशेष अवसर का इंतजार करना पड़ा, क्योंकि तीनों पुर तभी नष्ट किए जा सकते थे जब वे एक सीध में आ जाएं। भगवान शिव ने इसका समय निश्चित किया और देवताओं से कहा कि वे सभी तैयार रहें, क्योंकि त्रिपुरासुर के वध के लिए दिव्य शक्ति और साधनों की आवश्यकता होगी।


दिव्य रथ और शस्त्रों का निर्माण

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर को मारने के लिए एक विशाल दिव्य रथ का निर्माण किया। इस रथ के पहियों के रूप में चंद्रमा और सूर्य को रखा गया। पहियों की धुरी का कार्य मेरु पर्वत ने किया, और चारों वेद इस रथ के घोड़े बने। स्वयं भगवान विष्णु ने धनुष का रूप धारण किया, और अग्नि ने बाण के रूप में। वायुदेव ने बाण की गति को सुनिश्चित किया। इस प्रकार इस दिव्य रथ और शस्त्रों की सहायता से त्रिपुरासुर का वध संभव हो सका।


त्रिपुरासुर का वध

जब वह विशिष्ट अवसर आया, तब त्रिपुर (तीनों नगर) एक सीध में आ गए। भगवान शिव ने अपने महादेव स्वरूप में त्रिपुरासुर का वध करने के लिए अपना त्रिशूल उठाया और उस पर विशेष बाण चढ़ाकर तीनों नगरों को एक साथ नष्ट कर दिया। इस प्रकार त्रिपुरासुर का अंत हो गया और तीनों लोकों में पुनः शांति स्थापित हो गई।


शिव का त्रिपुरारी नाम

त्रिपुरासुर के वध के बाद भगवान शिव को 'त्रिपुरारी' या 'त्रिपुरान्तक' कहा गया, जिसका अर्थ है "त्रिपुर के विनाशक"। यह घटना शिव की महाशक्ति और उनके रौद्र रूप की महत्ता को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने अधर्म और अत्याचार का अंत कर धर्म की पुनः स्थापना की।


कथा का संदेश

त्रिपुरासुर की इस कथा से यह संदेश मिलता है कि कोई भी शक्ति या वरदान तभी तक स्थायी रह सकता है, जब तक उसका उपयोग धर्म और न्याय के लिए हो। जब अधर्म और अहंकार हद से बढ़ जाते हैं, तब ईश्वर का हस्तक्षेप होता है, और अधर्म का अंत सुनिश्चित होता है। भगवान शिव की यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमें सदैव धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और अपनी शक्ति का उपयोग लोककल्याण के लिए करना चाहिए।


इस प्रकार, त्रिपुरासुर का वध भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो भगवान शिव की महिमा और शक्ति का प्रतीक है।


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