मेजर शैतान सिंह भाटी की कहानी - Hindi Story
मेजर शैतान सिंह का नाम भारतीय सैन्य इतिहास में बहादुरी और साहस का प्रतीक है। उन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान लद्दाख के रेजांग ला में वीरता और दृढ़ता का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है।
Hindi Story |
प्रारंभिक जीवन
मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव में हुआ था। उनके पिता, लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी, भारतीय सेना में थे, जिससे मेजर शैतान सिंह को बचपन से ही देशभक्ति और सैन्य जीवन की प्रेरणा मिली।
सैन्य करियर की शुरुआत
उन्होंने 1949 में भारतीय सेना में प्रवेश किया और जल्द ही अपनी नेतृत्व क्षमता और साहस के कारण प्रमुख पदों पर आसीन हुए। अपनी बहादुरी और नेतृत्व कौशल के कारण उन्हें मेजर के पद पर पदोन्नत किया गया।
1962 का भारत-चीन युद्ध
1962 का भारत-चीन युद्ध एक कठिन समय था, जब भारतीय सेना को पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं पर दोनों मोर्चों पर दुश्मन का सामना करना पड़ा। इस युद्ध में मेजर शैतान सिंह 13 कुमाऊं रेजिमेंट के चार्ली कंपनी के कमांडर थे।
**रेजांग ला का युद्ध:** रेजांग ला की लड़ाई 18,000 फीट की ऊँचाई पर, लद्दाख के एक दुर्गम क्षेत्र में लड़ी गई थी। यह स्थान सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था, और इसे किसी भी कीमत पर बचाना ज़रूरी था।
18 नवम्बर 1962 की ठंडी सुबह में, चीनी सेना ने भारी संख्या में हमला किया। मेजर शैतान सिंह और उनकी कंपनी मात्र 120 जवानों के साथ मोर्चे पर थे, जबकि चीनी सेना के पास लगभग 5000 सैनिक थे। इसके बावजूद, उन्होंने अपने जवानों के साथ अंतिम सांस तक मोर्चा संभाले रखा।
वीरता और बलिदान
जब चीनी सेना ने भारी तोपखाने और मशीन गन से हमला किया, तब मेजर शैतान सिंह ने अपनी कंपनी के साथ दुश्मन को मुँहतोड़ जवाब दिया। उन्होंने अपने जवानों को मोर्चे पर बनाए रखने के लिए प्रेरित किया और खुद भी अग्रिम पंक्ति में लड़ते रहे।
युद्ध के दौरान, उन्हें गंभीर रूप से चोटें आईं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने साथियों को आदेश दिया कि वे उन्हें युद्धभूमि में ही छोड़ दें ताकि वे बाकी सैनिकों की जान बचा सकें। अंततः, वे वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन रेजांग ला की रक्षा करते हुए उन्होंने चीन की सेना को भारी क्षति पहुंचाई।
उनके बलिदान की गाथा
मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में, चार्ली कंपनी के जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को मार गिराया, जबकि उनके अपने 114 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। यह लड़ाई भारतीय सैन्य इतिहास में एक अद्वितीय उदाहरण है, जहाँ संख्या में कम होने के बावजूद भारतीय सेना ने अपने साहस और संकल्प से दुश्मन को करारा जवाब दिया।
परमवीर चक्र से सम्मानित
मेजर शैतान सिंह को उनके अद्वितीय साहस, नेतृत्व और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। उनकी वीरता की कहानी आज भी हर भारतीय को गर्व और प्रेरणा देती है।
मेजर शैतान सिंह की विरासत
मेजर शैतान सिंह की कहानी सिर्फ एक युद्ध की नहीं है, बल्कि वह साहस, देशभक्ति और नेतृत्व का प्रतीक है। उनकी वीरता ने यह साबित कर दिया कि भारतीय सैनिकों के लिए कर्तव्य से बढ़कर कुछ भी नहीं है। उनकी स्मृति में, रेजांग ला में एक युद्ध स्मारक स्थापित किया गया है, जहाँ उनके और उनके साथियों की वीरता का सम्मान किया जाता है।
मेजर शैतान सिंह की गाथा आज भी देश के हर कोने में सुनाई जाती है, और वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनकी बहादुरी और बलिदान हमें यह सिखाते हैं कि सच्ची वीरता और देशभक्ति किसी भी कठिनाई को पार कर सकती है।
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