राजा दुष्यंत और शकुंतला प्रेम की कहानी - Love Story in Hindi - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2024

राजा दुष्यंत और शकुंतला प्रेम की कहानी - Love Story in Hindi

राजा दुष्यंत और शकुंतला प्रेम की कहानी - Love Story in Hindi


राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा भारतीय साहित्य और संस्कृति में अत्यंत प्रसिद्ध है। यह कहानी महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित महाभारत के 'आदि पर्व' में तथा महाकवि कालिदास के प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान शाकुंतलम' में भी उल्लेखित है। यह प्रेम, त्याग, और पुनर्मिलन की एक मार्मिक गाथा है, जो हमें आदर्श प्रेम और निष्ठा का संदेश देती है।

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Love Story in Hindi

राजा दुष्यंत का परिचय

राजा दुष्यंत पुरुवंश के एक शक्तिशाली और धर्मपरायण राजा थे। वे सत्य और धर्म का पालन करने वाले, न्यायप्रिय और वीर योद्धा थे। उनकी वीरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे। एक दिन, राजा दुष्यंत शिकार करने के लिए वन में गए। वन में शिकार के दौरान वे एक आश्रम के पास पहुंचे, जहां से इस प्रेम कथा का आरंभ होता है।


शकुंतला का परिचय

शकुंतला महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की पुत्री थीं। जब विश्वामित्र अपनी तपस्या में लीन थे, इंद्र ने अपनी अप्सरा मेनका को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा। मेनका ने अपने सौंदर्य से विश्वामित्र को मोहित किया, जिससे उनकी तपस्या भंग हो गई। मेनका ने विश्वामित्र की पुत्री को जन्म दिया, परंतु उन्होंने शकुंतला को जन्म देने के बाद उसे छोड़ दिया और स्वर्ग लौट गईं। ऋषि कण्व ने शकुंतला को अपनाया और उनकी परवरिश की। ऋषि कण्व के आश्रम में शकुंतला का पालन-पोषण हुआ, और वह बहुत ही सुंदर, विदुषी और सरल स्वभाव की कन्या बनीं।


दुष्यंत और शकुंतला का प्रथम मिलन

एक दिन जब राजा दुष्यंत शिकार करते हुए ऋषि कण्व के आश्रम में पहुंचे, तो उन्होंने वहां शकुंतला को देखा। उनकी सुंदरता और सौम्यता से राजा प्रभावित हुए और पहली नजर में ही उन्हें प्रेम हो गया। शकुंतला भी दुष्यंत के साहस और सौम्य व्यक्तित्व से मोहित हो गईं। दोनों के बीच प्रेम उत्पन्न हुआ, और उन्होंने गंधर्व विवाह करने का निर्णय लिया। गंधर्व विवाह का अर्थ है कि यह विवाह बिना किसी धार्मिक अनुष्ठान या सामाजिक रीति-रिवाज के, केवल प्रेम और सहमति के आधार पर किया जाता है।


दुष्यंत का वचन और विदाई

विवाह के पश्चात, दुष्यंत को अपने राज्य के कार्यों के लिए वापस लौटना पड़ा। उन्होंने शकुंतला को वचन दिया कि वह शीघ्र ही वापस आएंगे और उसे अपने साथ ले जाएंगे। विदा होते समय दुष्यंत ने शकुंतला को अपनी अंगूठी दी, ताकि यह उनके प्रेम और वचन का प्रतीक रहे।


दुर्वासा ऋषि का श्राप

शकुंतला राजा दुष्यंत के इंतजार में खोई रहती थीं। एक दिन ऋषि दुर्वासा उनके आश्रम में आए। शकुंतला, राजा के प्रेम में मग्न होने के कारण, ऋषि का उचित स्वागत नहीं कर पाईं। इस पर क्रोधित होकर दुर्वासा ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि जिस व्यक्ति के बारे में तुम सोच रही हो, वह तुम्हें भूल जाएगा। शकुंतला ने दुर्वासा से माफी मांगी, तब ऋषि ने कहा कि यदि तुम उस व्यक्ति को कोई ऐसी वस्तु दिखाओगी जो उसे तुम्हारी याद दिलाए, तो वह तुम्हें फिर से पहचान लेगा। यह श्राप आगे चलकर कहानी में बड़ा मोड़ लाता है।


दुष्यंत का शकुंतला को भूलना

समय बीतने पर जब शकुंतला गर्भवती हुईं, तो ऋषि कण्व ने उन्हें राजा दुष्यंत के पास भेजा। जब वह अपने पति दुष्यंत के पास पहुंचीं, तो राजा दुष्यंत उन्हें पहचानने में असमर्थ थे, क्योंकि वह दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण उन्हें भूल चुके थे। शकुंतला ने राजा को उनकी दी हुई अंगूठी दिखानी चाही, परंतु दुर्भाग्यवश रास्ते में वह अंगूठी एक नदी में गिर गई थी। इस कारण राजा ने शकुंतला को स्वीकार नहीं किया और उसे महल से वापस भेज दिया। यह घटना शकुंतला के लिए बहुत पीड़ादायक थी, और वह दुखी होकर आश्रम लौट आईं।


अंगूठी का मिलना और दुष्यंत को याद आना

कई वर्षों बाद एक मछुआरे को राजा दुष्यंत की अंगूठी नदी में मिली और वह उस अंगूठी को राजा के पास लेकर आया। अंगूठी देखकर दुष्यंत को शकुंतला को दिया हुआ अपना वचन याद आ गया। वह अपने इस कृत्य पर पछताए और तुरंत शकुंतला को ढूंढ़ने के लिए निकले। दुष्यंत ने ऋषि कण्व के आश्रम में जाकर शकुंतला को बुलाया, लेकिन तब तक वह वहां नहीं थीं। 


 पुत्र भरत और पुनर्मिलन

काफी समय बाद राजा दुष्यंत की मुलाकात अपने पुत्र भरत से हुई, जो उस समय जंगल में खेल रहे थे। भरत अत्यंत वीर और पराक्रमी बालक थे, जो जंगल के जंगली पशुओं के साथ खेलते थे। जब राजा दुष्यंत को पता चला कि भरत उनका पुत्र है, तब उन्होंने शकुंतला से पुनर्मिलन करके विवाह किया और उन्हें अपने राज्य की रानी बनाया।


कथा का संदेश

राजा दुष्यंत और शकुंतला की यह प्रेमकथा प्रेम, निष्ठा, और धैर्य का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि सच्चा प्रेम कभी हारता नहीं, चाहे समय कितना भी कठोर हो। दुर्वासा ऋषि का श्राप और अंगूठी का खोना इस बात का संकेत है कि जीवन में कठिनाइयाँ और विघ्न आ सकते हैं, लेकिन अगर प्रेम सच्चा हो, तो अंततः मिलन अवश्य होता है।


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