राजकुमारी फिरोजा की अधूरी प्रेम कहानी - Love Story in Hindi
सन 1305 की बात है, उस समय जालौर के शासक कान्हड़देव सोनगरा थे। उस समय दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सेनापति आइन-उल-मुल्तानी को जालौर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मुल्तानी एक बहुत विशाल सेना लेकर जालौर की ओर रवाना हो गया। मुल्तानी एक बहुत चतुर सेनापति था, जालौर पर आक्रमण करने से पहले उसने कान्हड़देव को संदेश भेजा, जिसमे लिखा था, सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की विशाल सेना आपके दरवाजे पर खड़ी है, जालौर के मुट्ठी भर सैनिक इसका सामना नहीं कर सकते। इसलिए आपकी भलाई इसी में है कि आप हमसे संधि कर लें।
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कान्हड़देव यह जानते थे, की अलाउद्दीन खिलजी की सेना जालौर की सेना से कई गुना अधिक है, इसलिए उन्हें युद्ध में हराना असंभव है।अतः परिस्थिति को देखते हुए कान्हड़देव संधि करने के लिए राजी हो गए। संधि के बाद सेनापति आइन-उल-मुल्तानी ने कान्हड़देव को संधि पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए दिल्ली चलने को कहा। इस प्रकार कान्हड़देव अपने पुत्र विरमदेव को साथ लेकर दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी के दरबार पहुंचते हैं, और कुछ दिनों तक दिल्ली में ही रुकते हैं।
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वीरमदेव एक अत्यंत सुंदर और जोशीला नौजवान था, सारी दिल्ली में वीरमदेव के रूप के चर्चे थे। एक दिन अलाउद्दीन खिलजी की बेटी राजकुमारी फिरोजा ने जब वीरमदेव के बारे में सुना तो, उसकी भी वीरमदेव को देखने की इच्छा हुई। एक दिन सुबह के समय वीरमदेव अखाड़े से लौट रहा था, उसी समय राजकुमारी फिरोजा ने अपने महल की छत से वीरमदेव को देखा। वीरमदेव को देखते ही राजकुमारी फिरोजा उसकी सुंदरता पर मोहित हो गई, और मन ही मन वीरमदेव से प्रेम कर बैठी।
राजकुमारी ने अपने पिता अलाउद्दीन खिलजी से कहा कि वह वीरमदेव से विवाह करना चाहती है। अलाउद्दीन खिलजी ने वीरमदेव को गैर मजहब का बता कर विवाह की अनुमति नहीं दी। लेकिन फिरोजा तो वीरमदेव से ही विवाह करना चाहती थी, इस कारण अपनी पुत्री की जिद के आगे अलाउद्दीन को झुकना पड़ा और वह फिरोजा और वीरमदेव के विवाह के लिए राजी हो गया।
अलाउद्दीन खिलजी वीरमदेव और उसके पिता कान्हड़देव को अपने पास बुलाकर विरमदेव से अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव रखा। विरमदेव दूसरे धर्म की लड़की से विवाह नहीं करना चाहता था, लेकिन वह जानता था यदि उसने इस विवाह के लिए मना किया तो सुल्तान उसे बंदी बना लेगा, इसलिए उसने विवाह के लिए हां कर दी।
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अगले ही दिन वीरमदेव और उसके पिता दिल्ली से वापस जालौर लौट आए. जालौर पहुंचकर उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी को संदेश भेजा और फिरोजा से विवाह करने से साफ इनकार कर दिया।
ऐसा कहा जाता है, की एक बार राजकुमारी फिरोजा स्वयं वीरमदेव से मिलने जालौर आई थी, परंतु वीरमदेव उनसे मिलने भी नहीं गया और उसने, राजकुमारी को संदेस भेजा की सूर्य पश्चिम से उदय हो सकता है लेकिन वीरमदेव किसी तुर्क कन्या से विवाह नहीं कर सकता। वीरमदेव का यह संदेश सुनकर फिरोजा वापस दिल्ली लौट गई। लेकिन फिरोजा तो अब भी वीरमदेव से ही प्रेम करती थी, और उससे ही विवाह करना चाहती थी, इसलिए उसने अपनी धाय माता को वीरमदेव को समझाने के लिए जालौर भेजा।
जालौर पहुंचकर फिरोज की धाय माँ ने वीरमदेव को बहुत समझाया की फिरोजा आपसे बहुत प्रेम करती है, वह आपके बिना नहीं रह सकती। यदि आपने फिरोजा से विवाह नहीं किया तो सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी जालौर पर आक्रमण कर देंगे। आप फिरोज से विवाह करके इस व्यर्थ युद्ध को होने से रोक सकते हैं। धाय मां के बहुत समझाने पर भी वीरमदेव नहीं माना और अंत में धाय माँ भी निराश होकर वापस दिल्ली लौट आयीं।
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जब वीरमदेव ने विवाह से मना कर दिया तो अलाउद्दीन खिलजी बहुत नाराज हो जाता है और वह विशाल सेना भेज कर जालौर पर आक्रमण कर देता है।
उस समय कहा जाता था की जालौर को जीतने से पहले सिवाणा को जितना पड़ेगा क्योंकि सिवाणा एक ढाल की भांति जालौर की रक्षा करता था, इसलिए सिवाणा के किले को जालौर की चाबी कहा जाता था। सिवाणा के किले पर सीतलदेव और सोमदेव नाम के दो भाइयों का अधिकार था, यह दोनों भाई जालौर के राजा कान्हड़देव सोनगरा के भतीजे थे।
खिलजी की सेना सिवाणा के किले पर आक्रमण कर देती है, सीतलदेव और सोमदेव बहुत ही वीरता से युद्ध करते हैं, परंतु एक सैनिक के भितरघात के कारण दोनों भाइयों को युद्ध में शाका ( युद्ध में जब सभी पुरुष लड़ते हुए मारे जाते हैं, तब किले के भीतर सभी महिलाएं अपने शील की रक्षा के लिए अग्नि में कूद कर आत्मदाह कर लेती है, इस प्रकार जब किले के सभी स्त्री और पुरुष मारे जाते हैं, तो उसे शाका कहते हैं ) करना पड़ता है। यह सिवाणा का पहला शाका था।
इस युद्ध में दोनों भाई इतनी वीरता से युद्ध करते हैं, कि उनके बलिदान को आज भी याद किया जाता है। जिस दिन यह युद्ध हुआ था, आज भी सिवाणा में उस तिथि को प्रतिवर्ष दोनों भाइयों की याद में एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस युद्ध के बाद अलाउद्दीन खिलजी का सिवाणा के किले पर अधिकार हो जाता है, अलाउद्दीन खिलजी सिवाणा का नाम बदलकर खैराबाद कर देता है।
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इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी की सेनाएं जालौर पर आक्रमण करती है, कान्हड़देव और वीरमदेव वीरता पूर्वक लड़ते हुए अलाउद्दीन खिलजी की विशाल सेना का सामना करते हैं, परंतु अंत में उन्हें भी शाका करना पड़ता है। इस प्रकार जालौर पर भी अलाउद्दीन खिलजी का अधिकार हो जाता है, खिलजी जालौर का नाम बदलकर जलालाबाद कर देता है।
युद्ध में जाने से पहले फिरोजा ने सेनापति से कहा था की यदि हो सके तो वीरमदेव को जीवित पकड़ कर लाना, यदि वह जीवित न रहे तो उसका मृत शरीर ही लेकर आना। परन्तु यह युद्ध इतना भयानक था की वीरमदेव को जीवित नहीं पकड़ा जा सका। इस युद्ध में वीरमदेव का मस्तक शरीर से कटकर अलग हो गया था, बहुत खोज करने के बाद सेनापति को वीरमदेव का वह मस्तक मिल गया।
सेनापति उसके मस्तक को लेकर दिल्ली पहुंचा, जब राजकुमारी फिरोज के पास वीरमदेव के मस्तक को ले जाया गया, तो उसे मस्तक को देखकर राजकुमारी को असहनीय दुख हुआ। राजकुमारी फिरोज वीरमदेव के मस्तक को ले जाती है और उस मस्तक के साथ यमुना नदी में छलांग लगा देती है। यमुना नदी के गहरे जल में डूब कर राजकुमारी फिरोज की भी मृत्यु हो जाती है, इस प्रकार राजकुमारी फिरोज की प्रेम कहानी का दुखद अंत हो जाता है।
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