राजस्थान के लोक देवता वीर तेजाजी की कहानी - Kahaniya - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

राजस्थान के लोक देवता वीर तेजाजी की कहानी - Kahaniya

राजस्थान के लोक देवता वीर तेजाजी की कहानी


वीर तेजाजी राजस्थान के प्रमुख लोक देवता माने जाते हैं, और उन्हें सर्प देवता के रूप में भी पूजा जाता है। तेजाजी का जन्म 1074 ईस्वी में राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ताहरजी था, जो जाट समाज के एक प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति थे। तेजाजी की माता का नाम रामकुंवरी था। तेजाजी बचपन से ही पराक्रमी, साहसी और न्यायप्रिय थे। उनका नाम तेजसिंह रखा गया था, लेकिन समय के साथ वे वीर तेजाजी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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तेजाजी का जन्म जाट परिवार में हुआ था और उनका बाल्यकाल आम बच्चों की तरह ही बीता। लेकिन, बचपन से ही वे अपनी वीरता, साहस और न्यायप्रियता के लिए जाने जाने लगे थे। उन्होंने अपने जीवन में कई बार गरीब और शोषित लोगों की मदद की और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। 


तेजाजी का विवाह पनेर गांव के मुखिया रायमल जाट की पुत्री पेमल से किया गया था, विवाह के समय तेजाजी की आयु केवल 9 महीने थी तथा पेमल की आयु 6 महीने थी। उस समय की प्रथा के अनुसार बचपन में ही विवाह कर दिए जाते थे, लेकिन बाल्यावस्था में वधू अपने माता-पिता के साथ ही रहती थी, वधु को वयस्क होने के बाद ही ससुराल भेजा जाता था।

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विवाह के कुछ समय बाद तेजाजी के पिताजी और पेमल के मामा में किसी बात को लेकर विवाद हो गया, बात इतनी बढ़ गई - की कहासुनी के दौरान दोनों पक्षों में तलवारें चल गई। इस हमले में पेमल के मामा घायल हो गए, इस कारण दोनों परिवार आपस में शत्रु हो गए। 


इस शत्रुता के कारण तेजाजी को उनके परिवार वालों ने उनके विवाह के विषय में कुछ नहीं बताया। धीरे-धीरे तेजाजी बड़े होने लगे, जब तेजाजी 11 साल के हुए तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई। समय के साथ तेजाजी युवा अवस्था मैं प्रवेश करने लगे, अब तेजाजी अपने खेतों में कृषि का कार्य करने लगे। वह सुबह जल्दी ही अपने खेतों में चले जाते और दिन भर कड़ी मेहनत करके शाम को वापस घर लौटते, दोपहर के समय तेजाजी की भाभी उनके लिए खेतों में भोजन लेकर आया करती थी। 


एक दिन तेजाजी की भाभी को भोजन लाने में बहुत देर हो गई, तेजाजी सुबह से खेतों में काम करते-करते थक चुके थे और समय पर भोजन न आने के कारण उन्हें भूख भी बहुत लग रही थी। भोजन की प्रतीक्षा करते-करते तेजाजी बहुत क्रोधित हो गए। जब तेजाजी की भाभी उनके लिए भोजन लेकर आई, तो देरी से भोजन लाने के कारण तेजाजी ने उन्हें बहुत खरी-खोटी सुनाई। 

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इतना सब सुनने के कारण तेजाजी की भाभी को भी गुस्सा आ गया और उन्होंने कहा मुझे घर पर और भी बहुत से काम करने होते हैं, इसलिए मुझे खाना लाने में देरी हो जाती है। अगर आपको समय पर भोजन चाहिए तो आप अपनी पत्नी पेमल को क्यों नहीं ले आते। तेजाजी को अपनी पत्नी के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं था, तेजाजी ने बड़े आश्चर्य से अपनी भाभी से अपनी पत्नी पेमल के विषय में पूछा। तेजाजी की भाभी ने उनको उनके विवाह के बारे में सारी बात बता दी। 


तेजाजी उसी समय अपनी पत्नी को लाने के लिए चल दिए। 

तेजाजी की भाभी ने कहा - अरे देवर जी, खाना तो खाते जाओ। 

तेजाजी बोले - अब तो मैं अपनी पत्नी के हाथों से बना हुआ खाना ही खाऊंगा। ऐसा कह कर तेजाजी अपने घर पहुंचे। घर पहुंच कर तेजाजी नहा-धोकर तैयार हुए और अपनी घोड़ी लीलन पर बैठकर अपने ससुराल पनेर गांव की ओर चल पड़े। 

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शाम होते होते तेजाजी पूछते-पूछते पनेर गांव में अपने ससुराल पहुंच गए। तेजाजी इतने वर्षों में पहली बार अपनी ससुराल पहुंचे थे, इसलिए वहां उन्हें कोई नहीं पहचानता था, इसलिए भूलवश पेमल की मां ने तेजाजी का अपमान कर दिया। इस अपमान से आहत होकर तेजाजी वापस लौटने लगे। जब पेमल को मालूम हुआ की तेजाजी नाराज होकर वापस लौट रहे हैं, तो उसने अपनी सहेली लाखा गुजरी को तेजाजी को मनाने के लिए भेजा। 


लाखा गुजरी तुरंत तेजाजी के पास पहुंची और उन्हें किसी तरह मना कर अपने घर पर रात्रि विश्राम करने के लिए राजी कर लिया। तेजाजी ने लाखा गुजरी के घर भोजन करके रात्रि विश्राम किया, अगले दिन जब तेजाजी सोकर उठे तो उन्होंने लाखा गुजरी और उसके माता-पिता को चिंतित पाया। रात के समय कोई लाखा गुजरी की सभी गायों को चुरा ले गया था। 

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तेजाजी जो एक प्रसिद्ध गौ-रक्षक थे, उनसे यह बात सहन नहीं हुई, उन्होंने लाखा गुजरी को वचन दिया कि वह उसकी गायों को अवश्य वापस लेकर आएंगे। तेजाजी को ज्ञात हुआ कि मेर के मीणा लोग लाखा गुजरी की गायों को चुरा कर ले गए थे। तेजाजी ने मेर पहुंच कर मीणा लोगों से युद्ध किया और लाखा गुजरी की सभी गायों को छुड़ा लाए। 


तेजाजी ने लाखा गुजरी से कहा - अपनी गायों को गिन लो, कहीं कोई गाय रह तो नहीं गई। लाखा गुजरी ने बताया उसकी सभी गायें वापस आ गई है, लेकिन एक बछड़ा अभी भी नहीं आया है, लाखा गुजरी बोली वह बछड़ा मुझे बहुत प्यारा है, मैं उसके बिना नहीं रह सकती। तेजाजी उस बछड़े को लाने के लिए वापस मेर की ओर रवाना होते हैं। 


रास्ते में सेन्द्रिया नाम के स्थान पर तेजाजी ने देखा की एक काला नाग आग में जल रहा था, तेजाजी ने उसे बचाने के लिए सांप को अपने भाले से उठाकर एक तरफ रख दिया। वह एक बोलने वाला इच्छाधारी सांप था, उसने सर्प जीवन से मुक्ति पाने के लिए स्वयं ही अग्नि में प्रवेश किया था। 

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तेजाजी के इस कार्य से वह सर्प नाराज हो गया, वह सर्प तेजाजी से बोला - मैंने मुक्ति पाने के लिए स्वयं ही अग्नि में प्रवेश किया था, मुझे कुछ ही देर में मुक्ति मिलने वाली थी, लेकिन आपने मुझे बचा कर मुझे मेरी मुक्ति से दूर कर दिया। अब मुझे फिर से बहुत लंबे समय तक इस सर्प के रूप में जीवन जीना पड़ेगा, इसलिए अब मैं तुम्हें अवश्य दंड दूंगा। मैं तुम्हें डस कर तुम्हारी मृत्यु का कारण बनूँगा। 


तेजाजी बोले मैंने तो तुम्हारी भलाई करने के लिए तुम्हें अग्नि से बचाया था, अगर तुम इसे मेरा अपराध मानते हो - तो मुझे तुम्हारा दंड स्वीकार है। लेकिन इस समय मैं लाखा गुजरी के बछड़े को लेने जा रहा हूं, लाखा गुजरी को उसका बछड़ा लौटा कर मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तब तुम मुझे डस लेना। 


वह सर्प बोला मुझे तुम पर विश्वास नहीं है, यदि तुम वापस ही न लौटे तो?  तेजाजी बोले मैं कभी झूठ नहीं बोलता, मैं तुम्हें वचन देता हूं, मैं अवश्य वापस लौट कर तुम्हारा दंड स्वीकार करूंगा। सर्प ने तेजाजी के बात पर विश्वास करके उन्हें जाने की अनुमति दे दी। 

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उधर मेर के मीणा लोग यह जानते थे की तेजाजी उस बछड़े को लेने वापस जरूर आएंगे, इसलिए इस बार उन्होंने पूरी तैयारी कर रखी थी। जैसे ही तेजाजी वहां पहुंचे उन्होंने तेजाजी को चारों तरफ से घेरकर हमला कर दिया। 


इस हमले में तेजाजी बुरी तरह घायल हो गए, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह बछड़े को छुड़ा लिया। बछड़े  को लेकर तेजाजी लाखा गुजरी के पास पहुंचे और उसे उसका बछड़ा लौटा दिया। तेजाजी की हालत देखकर लाखा गुजरी सिहर उठी, तेजाजी के शरीर के प्रत्येक अंग से रक्त बह रहा था। लाखा गुजरी तेजाजी की चिकित्सा करना चाहती थी, तेजाजी बोले - मैं एक सर्प को वचन देकर आया हूं, इसलिए मुझे अपना वचन पूरा करने के लिए उसके पास जाना होगा। 


ऐसा कह कर तेजाजी इस गंभीर घायल अवस्था में उस सर्प के पास पहुंचे। तेजाजी उस सर्प से बोले - मैं अपना वचन पूरा करने आ गया हूं, इससे पहले की मेरे प्राण निकल जाए - तू  मुझे डस ले, जिससे मैं अपना वचन पूरा कर सकूं। तेजाजी की हालत देखकर वह सर्प बोला - तुम्हारा शरीर खून से लथपथ है, तुम्हारे शरीर पर ऐसा कोई जगह नहीं जहां रक्त ना लगा हो, मैं किसी रक्त लगे स्थान पर नहीं डस सकता, इसलिए मुझे कोई ऐसा स्थान बताओ जहां मैं तुम्हें डस सकूं। 

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तब तेजाजी ने कुछ सोच कर सर्प से कहा - मेरी जीभ पर कोई घाव नहीं है और ना ही रक्त लगा है, तुम मुझे मेरी जीभ पर डस सकते हो। ऐसा कहकर तेजाजी ने अपनी जीभ बाहर निकाली, सर्प ने तेजाजी को उनकी जीभ पर ड्स लिया। 


तेजाजी स्वयं को सर्प से कटवाकर वापस लौटते हैं, धीरे-धीरे सर्प का जहर तेजाजी के सारे शरीर में फैल जाता है और सुरसुरा नामक स्थान पर आकर उनकी मृत्यु हो जाती है। 


इस प्रकार तेजाजी ने गायों की रक्षा करते-करते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इसलिए आज लगभग एक हजार साल बाद भी उन्हें एक गौ-रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के घर-घर में उनकी पूजा की जाती है। राजस्थान के कई क्षेत्रों में तेजाजी को सर्प देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति सांप के काटने पर तेजाजी का स्मरण करता है, तो उसे राहत मिलती है। नागौर, अजमेर, और अन्य इलाकों में तेजाजी के मंदिर बने हुए हैं, जहां हर साल बड़े मेलों का आयोजन होता है। विशेष रूप से 'भादवा शुक्ल दशमी' को तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है, जो तेजाजी के बलिदान की स्मृति में मनाया जाता है।

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वीर तेजाजी की कहानी साहस, ईमानदारी और बलिदान की एक अद्वितीय मिसाल है। उन्होंने अपने जीवन में सत्य की रक्षा के लिए जो त्याग किया, वह आज भी राजस्थान और आसपास के इलाकों में श्रद्धा और आस्था के साथ याद किया जाता है। तेजाजी को न केवल एक वीर योद्धा के रूप में बल्कि एक लोक देवता के रूप में भी पूजा जाता है, जो आज भी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

 

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