कल्ला रायमलोत और राजकुमारी भानकँवर की कहानी - Kahaniya - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 3 सितंबर 2024

कल्ला रायमलोत और राजकुमारी भानकँवर की कहानी - Kahaniya

कल्ला रायमलोत और राजकुमारी भानकँवर की कहानी - Kahaniya


मुगल काल की बात है, उस समय भारत पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। अकबर का दरबार सजा हुआ था, भारत के बड़े-बड़े राजा महाराजा उसके दरबार में बैठे थे। बादशाह अकबर ने बातों ही बातों में बूंदी के राजा सुरजन सिंह से पूछा - सुरजन सिंह जी हमने सुना है आपकी राजकुमारी विवाह के योग्य हो गई है, इसलिए हम चाहते हैं कि आपकी राजकुमारी भानकंवर का विवाह हमारे शहजादे जहांगीर से हो जाए। सुरजन सिंह अपनी पुत्री का विवाह मुगलों में नहीं करना चाहते थे, लेकिन वह भरे दरबार में बादशाह अकबर को सीधे मना भी नहीं कर सकते थे। 

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कुछ क्षण सोच कर सुरजन सिंह बोले - मेरी पुत्री का विवाह मुग़ल शहजादे से हो जाए तो मुझे बहुत खुशी होगी, लेकिन मैं अपनी पुत्री की सगाई कर चुका हूं, यदि आपने कुछ दिन पहले कहा होता, तो मैं अवश्य अपनी पुत्री का विवाह जहांगीर से कर देता। सुरजन सिंह का चेहरा देखकर बादशाह अकबर भांप गया कि वह झूठ बोल रहे हैं, उसने तुरंत पूछा - कहाँ सगाई की है। इस बात पर सुरजन सिंह फंस गए, वह झूठ बोलकर बादशाह के गुस्से को आमंत्रण नहीं दे सकते थे।

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सुरजन सिंह ने दरबार में एक नजर घुमा कर देखा, दरबार में सिवाणा का सामंत कल्ला रायमलोत भी बैठा था, जो एक सजीला, वीर और नौजवान योद्धा था। सुरजन सिंह बोले - मैंने अपनी पुत्री भानकँवर की सगाई कल्ला रायमलोत से की है, यह सुनकर कल्ला रायमलोत खुश हो गया और उसने भी सुरजन सिंह की हां में हां मिलाई और बादशाह अकबर के सामने कहा कि अभी कुछ ही दिन पहले ही मेरी सगाई बूंदी की राजकुमारी भानकँवर से हुई है। अकबर भाँप गया कि दोनों व्यक्ति झूठ बोल रहे हैं, लेकिन वह कुछ नहीं कर सकता था। 


अकबर अपने चेहरे पर झूठी हंसी लाकर बोला - आपने अपनी पुत्री की सगाई कर ली और हमें निमंत्रण भी नहीं दिया। सुरजन सिंह जी बोले बादशाह हमने बहुत जल्दबाजी में राजकुमारी की सगाई की थी, इसलिए हम किसी को निमंत्रण नहीं दे सके। परंतु जब हम राजकुमारी का विवाह करेंगे तो अवश्य आपको  निमंत्रण देंगे। इस घटना के बाद अकबर थोड़ा परेशान हो गया और कुछ देर बाद वह दरबार स्थागित करके चला गया। 


दरबार में उपस्थित सभी राजा महाराजा यह समझ चुके थे, की इन दोनों ने बादशाह अकबर को बेवकूफ बना दिया है। सुरजन सिंह ने कल्ला रायमलोत को बुला कर कहा - बातों बातों में ही सही लेकिन मैंने अपनी पुत्री भानकँवर की सगाई तुमसे कर दी है, इसलिए अब तुम तुरंत बूंदी पहुंचकर मेरी पुत्री से वास्तव में सगाई कर लो, नहीं तो अगर अकबर को पता चल गया तो वह बहुत ज्यादा नाराज हो जाएगा। 

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कल्ला रायमलोत उसी दिन आगरा से बूंदी पहुंचकर राजकुमारी भानकँवर से सगाई कर लेता है। कुछ दिन बाद अकबर का दरबार फिर से लगा, अकबर अपने सामने कल्ला रायमलोत को देखकर खीज गया, और उसने कल्ला रायमलोत को लाहौर का उप-सूबेदार बनाकर लाहौर भेज दिया। लाहौर के सूबेदार से कल्ला रायमलोत की नहीं बनती थी, कुछ समय बाद कल्ला रायमलोत और लाहौर के सूबेदार में विवाद हो गया। इस विवाद के कारण कल्ला रायमलोत ने सूबेदार की हत्या कर दी। 


कल्ला रायमलोत यह जानता था, कि अकबर अब उसे नहीं छोड़ने वाला, इसलिए वह तुरंत लाहौर से अपने राज्य सिवाणा आ गया। दो-तीन महीनों का समय बीत गया लेकिन अकबर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। फिर कुछ दिन बाद अकबर ने संदेश भेजकर कल्ला रायमलोत को आगरा बुलवाया। जब वह आगरा पहुंचा तो अकबर ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया, कल्ला रायमलोत को यह सब बहुत अजीब लगा। अकबर बोला - कल्लाजी अपने लाहौर में बहुत अच्छा काम किया, वहां का सूबेदार सही व्यक्ति नहीं था, उसे तो मरना ही था। मैंने इसीलिए आपको लाहौर भेजा था, ताकि आप मेरा यह काम कर सके। मैं आपके इस काम से बहुत खुश हूं, इसलिए अब मैं आपको लाहौर का सूबेदार नियुक्त करता हूं। 


कल्ला रायमलोत मन ही मन सोच रहा था, दाल में जरूर कुछ काला है क्योंकि अकबर कभी किसी की इतनी तारीफ नहीं करता था। कुछ देर बाद बातों ही बातों में अकबर ने कल्ला रायमलोत से पूछा -  मैंने सुना है आपकी बहन विवाह के योग्य हो गई है, मैं चाहता हूं शहजादे जहांगीर का विवाह आपकी बहन से हो जाए। कल्ला रायमलोत समझ गया की अकबर बूंदी की राजकुमारी का विवाह जहांगीर से न हो पाने का बदला ले रहा है। 

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कल्ला रायमलोत जहांगीर से अपनी बहन का विवाह नहीं करना चाहता था, इसलिए वह बोला, आपके शहजादे से मेरी बहन का विवाह हो, यह तो मैं कभी सोच भी नहीं सकता। यह तो हमारे लिए बहुत बड़ी बात है, हम तो छोटे से क्षेत्र के सामंत हैं, हम किसी बड़े राजा महाराजा या बादशाह से वैवाहिक संबंध रखने की सोच ही नहीं सकते।  लेकिन बादशाह - हमसे वैवाहिक संबंध बनाना तो आपकी शान के खिलाफ होगा, इसलिए आप किसी बड़े राजा या महाराजा की पुत्री से जहांगीर का विवाह कीजिए। बादशाह अकबर बोला -  हम छोटे बड़े का भेद नहीं देखते, हमें तो बस अच्छे गुण और संस्कारों वाली लड़की चाहिए, आप तो बस विवाह की तैयारी शुरू कीजिए। 


कल्ला रायमलोत बोला मेरे पास अभी विवाह करवाने के लिए धन नहीं है, अकबर बोला आपको जितना धन चाहिए आप शाही खजाने से ले जा सकते हैं। कल्ला रायमलोत अकबर के शाही खजाने से बहुत सारा धन लेकर सिवाणा पहुंचता है। सिवाणा पहुंचकर वह उस धन से अपने किले की मरम्मत करवाता है और उसका पुनर्निर्माण करवाता है और साथ ही में युद्ध की तैयारी भी करता है। 


सारी तैयारियां पूरी होने के बाद वह अकबर को संदेश भेज कर जहांगीर को विवाह के लिए सिवाणा आने का निमंत्रण देता है, साथ ही वह अकबर से आग्रह करता है की जहांगीर की बारात में अधिक लोग ना भेजें, क्योंकि हमारे पास अधिक लोगों को ठहराने की व्यवस्था नहीं है। अकबर ने संदेश भिजवाया कि आप चिंता ना करें बारात में जहांगीर के साथ केवल उसके कुछ मित्र और दास दासियाँ ही होंगे। 


नियत तिथि पर जहांगीर की बारात सिवाणा पहुंच गई, जहांगीर की बारात को विवाह स्थल से कुछ दूरी पर पड़ाव  बनाकर ठहराया गया (राजस्थान की प्रथा के अनुसार जब भी बारात आती थी, तो उसे गांव के बाहर ही ठहराया जाता था। इसके बाद कन्या पक्ष वाले जाकर उनका स्वागत करते थे और उन्हें अपने साथ लेकर आते थे, इस प्रथा को सामेला कहा जाता था। आज भी राजस्थान में इस प्रथा का पालन किया जाता है). कुछ देर बाद कल्ला रायमलोत बारात का स्वागत करने के लिए  पहुंचता है। 


कल्ला रायमलोत ने आते ही जहांगीर को जूते की माला पहनाई, फिर उसने जहांगीर और उसके दोस्तों की खूब पिटाई की और उनके कपड़े तक फाड़ डाले। जहांगीर और उसके दोस्त जैसे तैसे अपनी जान बचाकर वहां से भाग निकले। जहांगीर ने अकबर को सूचना भिजवाई कि कल्ला रायमलोत ने उन्हें विवाह में बुलाकर उनका अपमान किया है, तथा उन्हें मारने की भी कोशिश की है। यह समाचार सुनकर बादशाह अकबर का खून खौल उठा,  मुगल शहजादे का अपमान बादशाह की बर्दाश्त से बाहर था। अकबर ने बहुत विशाल सेना सिवाणा पर चढ़ाई करने के लिए भेजी, तथा सेनापति को यह आदेश दिया की किसी भी हाल में कल्ला रायमलोत जीवित नहीं बजना चाहिए। 

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कल्ला रायमलोत जानता था कि अब अकबर उसे जीवित नहीं छोड़ेगा, इसलिए वह साका करने की तैयारी में जुट जाता है (उस समय के युद्धों में जब सभी राजपूत योद्धा अपनी अंतिम सांस तक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करते थे, और उन योद्धाओं की महिलाएं अपने शील की रक्षा के लिए किले के भीतर अग्नि में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे देती थी, इस प्रकार जब सभी पुरुष और महिलाएं युद्ध के दौरान अपने प्राणों का बलिदान कर देते थे, इस घटना को शाका कहा जाता है) । 


जब बूंदी की राजकुमारी भानकँवर को मालूम हुआ की उसका होने वाला पति सिवाणा में शाका करने वाला है, तो वह भी कल्ला रायमलोत के संग शाका करने के लिए सिवाणा पहुंच जाती है। कुछ ही दिनों में अकबर की विशाल सेना सिवाणा पहुंच जाती है। सिवाणा में भयानक युद्ध छिड़ जाता है, युद्ध में भीषण रक्त बात होता है, कल्ला रायमलोत और उसके सैनिक अपनी अंतिम सांस तक वीरता पूर्वक युद्ध करते हुए मारे जाते हैं, उधर सिवाणा के किले के भीतर राजकुमारी भानकँवर की अगुवाई में किले की सभी महिलाएं अग्नि में कूद कर अपने प्राणों का अंत कर लेती है। यह सिवाणा का दूसरा शाखा था। 


सिवाणा का यह युद्ध कल्ला रायमलोत की वीरता और राजकुमारी भानकँवर के बलिदान के लिए जाना जाता है।  कल्ला रायमलोत एक ऐसा योद्धा जो युद्ध में मृत्यु निश्चित होते हुए भी अपने पैर पीछे नहीं हटाता और युद्ध में वीरता पूर्वक लड़ता हुआ वीरगति प्राप्त करता है। दूसरी ओर भानकँवर एक अविवाहित युवती जो अपने होने वाले पति का अंतिम समय में साथ देने और उसके कुल की परंपराओं का निर्वहन करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देती है। ऐसे वीरों और वीरांगनाओं के कारण ही राजस्थान की भूमि को वीरों की भूमि कहा जाता है। 

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