संत श्री छोटे सरकार की अध्बुध कहानी - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 2 जुलाई 2024

संत श्री छोटे सरकार की अध्बुध कहानी

संत श्री छोटे सरकार की अध्बुध कहानी 


भारतवर्ष में नर्मदा खंड के महान सिद्ध संत श्री धूनी वाले दादाजी मध्यप्रदेश के खंडवा में जिनकी अखंड धूनी आज भी विराजमान है, उन्हें साक्षात भगवान शिव का स्वरूप ही माना जाता था। उनके बाद उनके शिष्य हुए श्री हरिहर भोले भगवान जी,  वह भी एक महान सिद्ध संत हुए। संत श्री हरिहर भोले भगवान जी के शिष्य हुए संत श्री बड़े सरकार. संत श्री बड़े सरकार भी महान सिद्ध संत हुए, उन्होंने 18 वर्ष तक बिना खाए पिए एक ही स्थान पर बैठे रहकर तपस्या की थी। संत श्री बड़े सरकार के शिष्य हुए संत श्री छोटे सरकार। संत श्री छोटे सरकार भी अद्भुत संत हुए, जिनके विषय में इस कथा में वर्णन किया गया है। 


संत श्री छोटे सरकार पैरों से अपाहिज थे, लेकिन फिर भी वह अपने गुरुजी की सेवा में कोई कमी ना रह जाए इसका पूरा प्रयास किया करते थे। संत श्री छोटे सरकार अक्सर अपने गुरु जी को महान सिद्ध संतों के पद गाकर सुनाते थे, संत श्री छोटे सरकार की वाणी में अद्भुत मिठास थी, उनके गायन को सुनकर उनके गुरुजी मंत्रमुग्ध हो जाते थे, और उनके नेत्रों से अविरल अश्रु की धारा बहती रहती थी।

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एक दिन पता नहीं संत श्री बड़े सरकार को क्या सूझी, उन्होंने अपने शिष्य छोटे सरकार से कहा, की जा तू दिल्ली दरबार चला जा, हमने तुझे दिल्ली दरबार सौंप दिया है। संत श्री छोटे सरकार गुरु आज्ञा पालन करने वाले एक परम गुरुभक्त शिष्य थे, उन्होंने अपने गुरुजी से यह सवाल भी नहीं किया कि मैं अपाहिज हूं, मैं दिल्ली कैसे जाऊंगा,  मैं वहां कहां रहूंगा। बस गुरुजी की आज्ञा हो गई और वह निकल पड़े। 


पैरों से अपाहिज होने के कारण वह घिसटते-घिसटते रेलवे स्टेशन पहुंचे, वहां उन्होंने लोगों से कहा मुझे दिल्ली दरबार जाना है, लोगों ने समझा इन्हें दिल्ली जाना है, इसलिए लोगों ने उन्हें उठाकर दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठा दिया। जब ट्रेन दिल्ली पहुंच गई, तो ट्रेन के सारे यात्री उतर गए, लेकिन वे तो स्वयं ट्रैन से उतर भी नहीं सकते थे, इसलिए लोगों ने उन्हें उठाकर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर बैठा दिया। 


सुबह से शाम हो गई बाबा वहां प्लेटफार्म पर ही बैठे रहे, प्लेटफार्म पर घूमने वाले पुलिस कर्मियों ने उनसे पूछा बाबा कहां जाओगे, संत बोले मुझे दिल्ली दरबार जाना है। पुलिस वालों ने कहा, यहां पर दिल्ली दरबार नाम की कोई जगह नहीं है, यह तो दिल्ली जंक्शन है, यहां पर आप ऐसे नहीं बैठे रह सकते। संत श्री छोटे सरकार बोले, यहां नहीं बैठ सकते तो जहां आपकी इच्छा हो वहां मुझे उठाकर रख दो। पुलिस वालों ने उन्हें उठाकर रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर बैठा दिया।  


वहीँ फुटपाथ पर एक व्यक्ति अपने ठेले पर गन्ने बेचा करता था। वह व्यक्ति बार-बार आवाज आवाज लगा रहा था "ठंडी मीठी गनेरी लो, ठंडी मीठी गनेरी लो"। उसे देखकर वह संत भी आवाज लगाने लगे "ठंडी मीठी गनेरी लो, ठंडी मीठी गनेरी लो"। भगवान की ऐसी कृपा हुई, संत श्री छोटे सरकार के आवाज लगाने से उस व्यक्ति के सारे गन्ने कुछ ही देर में बिक गए। उस व्यक्ति ने मन ही मन सोचा, इन साधु के आवाज लगाने में बड़ा जादू है, इनकी वजह से ही मेरे गन्ने बहुत जल्दी बिक गए। 


अगले दिन वह व्यक्ति रोज की तरह फिर से गन्ना बेचने आ गया, संत जी तो वहीं बैठे थे, जैसे ही वह व्यक्ति गन्ने  बेचने के लिए आवाज लगाता, उसी के साथ-साथ वे संत भी आवाज लगाते "ठंडी मीठी गनेरी लो, ठंडी मीठी गनेरी लो"। भगवान की कृपा हुई, और आज भी उस व्यक्ति के गन्ने बहुत जल्दी बिक गए। वह व्यक्ति सालों से वहां पर गन्ने बेच रहा था, लेकिन इस प्रकार इतनी जल्दी उसके गन्ने पहले कभी नहीं बिके थे। अब उसे विश्वास हो चला था, की यह तो इन साधु का ही चमत्कार है। 


उस व्यक्ति की उन संत पर श्रद्धा जम गई, उसने उन्हें भोजन कराया और अपने घर चला गया। अगले दिन फिर रोज की तरह वह व्यक्ति वहाँ गन्ना बेचने आया। वे संत तो वहीं बैठे थे, इस बार वह अपने घर से ही उन संत के लिए भोजन बनाकर लाया था। आते ही सबसे पहले उसने संत को भोजन कराया, इसके बाद वह अपना गन्ना बेचने लगा, उसके साथ-साथ संत श्री छोटे सरकार भी आवाज लगाने लगे "ठंडी मीठी गनेरी लो, ठंडी मीठी गनेरी लो"। आज भी उस व्यक्ति के गन्ने बहुत जल्दी बिक गए। 


अब उस व्यक्ति ने उन संत से पूछा, बाबा क्या आप मेरे साथ मेरे घर चलोगे। संत श्री छोटे सरकार बोले, जैसी तुम्हारी इच्छा। अब उस व्यक्ति ने उन संत को उठाकर अपने ठेले पर बैठा लिया और उन्हें अपने घर ले गया। वह व्यक्ति एक बहुत ही गरीब व्यक्ति था, शहर की झोपड़पट्टी में उसकी एक छोटी सी झोपडी थी, जिसे टीन-टप्पर एकत्र करके बनाया गया था। उसकी झोपड़ी में इतनी जगह भी नहीं थी, कि वह उन संत को रख सके, इसीलिए उसने अपनी झोपडी के बाहर एक छोटा सा छप्पर बनाकर, संत को उसमें ठहरा दिया। 


अब यह उस व्यक्ति का नित्य का नियम हो गया, वह रोज सुबह उन संत को अपने ठेले पर बैठाकर गन्ने बेचने ले जाता और शाम को उन्हें अपने संग वापस घर ले आता। संत श्री छोटे सरकार दिन भर उस व्यक्ति के गन्ने बिकवाते और पूरी रात उसके घर के बाहर बैठकर भगवान के भजन गाते थे। उनकी वाणी में इतनी मिठास थी, की आसपास के सभी लोग उनके भजन सुनकर मंत्र मुग्ध रह जाते थे। लोग कहते थे, अरे यह बाबा सोता कब है, रात भर तो भजन गाता रहता है और सुबह इसके साथ ही गन्ना बेचने चला जाता है, इस बाबा को नींद भी आती है या नहीं। 


संत श्री छोटे सरकार के आ जाने से उस  व्यक्ति का काम भी बहुत अच्छा चलने लगा था, इसलिए वह भी बहुत मन लगाकर उनकी सेवा करता था। कुछ दिनों बाद सोमवती अमावस्या का पर्व आया। गन्ने वाले ने संत से कहा - बाबा आज सोमवती अमावस्या का पर्व है, आज हम यमुना जी के किनारे निगम बोध घाट पर गन्ना बेचने जाएंगे, आज के दिन वहां बहुत बड़ी संख्या में लोग स्नान करने आते हैं, इसलिए आज थोड़े ज्यादा गाने लेकर जाऊंगा. क्या आप भी मेरे साथ यमुना तट पर चलोगे। 


संत श्री छोटे सरकार बोले ठीक है बच्चा मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा, मुझे तुम वहां पर यमुना स्नान करवा देना।  व्यक्ति ने हामी भर दी. अब वह व्यक्ति संत को अपने ठेले पर बैठाकर यमुना नदी के किनारे निगम बोध घाट पर ले गया। यहां पर उसने उन संत को बड़े अच्छे से यमुना स्नान करवाया और उन्हें एक स्थान पर बैठ कर गन्ने बेचने लगा। हमेशा की तरह आज भी उसके गन्ने बहुत जल्दी बिक गए, अब गन्ने बेचकर वह व्यक्ति संत से बोला - आइए बाबा जी अब घर चलते हैं।


संत बोले अब हम अपने स्थान पर आ गए हैं, अब हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे। वह व्यक्ति बोला अरे बाबाजी यहां खुले आसमान के नीचे बैठकर क्या करोगे। संत श्री छोटे सरकार बोले - हमारे गुरुजी की आज्ञा थी की हमें दिल्ली दरबार जाना है, अब हम अपने स्थान पर पहुंच गए हैं, अब हम यही रहेंगे। तुमने हमारी बहुत सेवा की, हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं की तुम खूब फलो फूलो। अब तुम अपने घर जाओ, हम अब से यही रहेंगे। उसे व्यक्ति ने उन संत को मनाने की बहुत कोशिश की परंतु वे संत नहीं माने, बोले हमें हमारे गुरु महाराज के सहारे छोड़कर चले जाओ, अंततः हारकर वह व्यक्ति वहां से चला गया। 


अब संत श्री छोटे सरकार यमुना नदी के किनारे खुले आसमान के नीचे बैठे थे। एक दो दिन यूँ ही बीत गए, अब यमुना किनारे घूमने वाले दीन-दुखी लोग संत के पास आने लगे और अपने दुखों के निवारण का उपाय पूछने लगे। वह संत जिस स्थान पर बैठे थे, उसके आसपास थोड़ा गड्ढा सा था। संत उन लोगों से कहते - यमुना नदी से थोड़ी मिट्टी लाकर इस गड्ढे में डाल दो और राम-राम जपो तुम्हारा काम बन जाएगा। संत की वाणी सफल हो जाती और लोगों के काम बनने लगे। 


जब लोगों के काम बनने लगे तो लोग उन्हें फूल मालाएं और भेंट प्रसादी चढ़ने लगे, संत को तो किसी चीज की आवश्यकता थी नहीं, इसलिए वे सब भेंट प्रसादी ग़रीबों को बाँटने लगे, इससे लोगों की भीड़ और अधिक बढ़ने लगी। लोग उनसे अपनी हर तरह की समस्याओं के उपाय पूछते। जब कोई अपने रोग निवारण के उद्देश्य से आता, तो संत उसे कुछ फूलों की पंखुड़ियां दे देते, जिसे खाकर वह व्यक्ति स्वस्थ हो जाता। लोगों के बड़े-बड़े रोग संत के आशीर्वाद से ठीक होने लगे। धीरे-धीरे उन संत की ख्याति सब तरफ फैलने लगी। 


उस समय भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, उन्हें बचपन से ही अस्थमा की बीमारी थी, थोड़ा सा भी परिश्रम करने पर उनकी सांस उखड़ने लगती थी। वे भारत के राष्ट्रपति थे, इसलिए उन्हें हर तरह की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा सुविधा प्राप्त थी, लेकिन फिर भी उनका अस्थमा रोग ठीक नहीं हो पा रहा था। एक दिन उनकी बहन यमुना स्नान करने पहुंची, वहां उन्हें उन संत की ख्याति का पता चला, कि इन संत के आशीर्वाद से हर तरह के रोग ठीक हो जाते हैं। 


श्री राजेंद्र प्रसाद जी की बहन ने अपना परिचय दिए बिना संत श्री छोटे सरकार से अपने भाई का अस्थमा रोग ठीक करने के लिए आशीर्वाद मांगा। संत ने भी लोगों द्वारा चढ़ाई हुई फूल मालाओं में से गुलाब के फूलों के कुछ  पत्ते तोड़कर उन्हें दे दिए, और कहा अपने भाई को खिला देना भगवान सब ठीक करेंगे। अब राजेंद्र प्रसाद जी के पास उनकी बहन संत का प्रसाद लेकर आई और कहा, भैया यह एक सिद्ध संत का प्रसाद है, इसे खा लो इससे आप अस्थमा ठीक हो जाएगा। 


यह सब देख कर राजेंद्र प्रसाद जी अपनी बहन पर गुस्सा हो गए और बोले तुम भी कहां साधु महात्माओं के चक्कर में पड़ जाती हो, जब इतने बड़े-बड़े डाक्टरों की दवाइयों से कुछ नहीं हुआ, तो इन फूलों के पत्तों को खाने से क्या होगा। उनकी बहन बोली भैया यह तो केवल गुलाब की पत्ती है, इसका कोई नुक्सान तो है नहीं, आपका इन्हें खाने में क्या जाता है। ऐसा कहकर राजेंद्र प्रसाद जी की बहन ने हटपूर्वक उन्हें वह प्रसाद खिला दिया। प्रसाद खाते ही उनका बचपन का अस्थमा रोग तुरंत ठीक हो गया, ऐसा जैसे पहले कभी कुछ था ही नहीं। 


यह देखकर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी भी आश्चर्यचकित रह गए, अब उनकी भी उन संत के प्रति श्रद्धा बढ़ गयी थी। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी बहन से उन संत के बारे में पूरी जानकारी लेकर उन संत को राष्ट्रपति भवन आने का न्योता भेजा। संत श्री छोटे सरकार बोले हम किसी राष्ट्रपति को नहीं जानते, हम किसी के यहां नहीं आते-जाते। हम तो यहां अपने गुरु के बताए स्थान पर बैठे हैं, जिस किसी को मिलना हो वह हमसे यहीं आकर मिले, हम किसी से मिलने नहीं जाते। 


जब संत श्री छोटे सरकार ने राष्ट्रपति भवन आने से मना कर दिया तो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने स्वयं चलकर उनसे मिलने का निश्चय किया। जब भारत के राष्ट्रपति ने उन संत से मिलने का निश्चय किया, तो सारा सरकारी महकमा राष्ट्रपति की इस यात्रा की तैयारी में जुट गया। राष्ट्रपति के वहां पहुंचने से पहले ही जिस जगह पर वह संत बैठे थे, वह जगह उन संत के नाम से अलॉट हो गई, वहां पर चार दिवारी करके एक अच्छे भवन का निर्माण करवा दिया गया, आसपास की सारी जगह समतल कर दी गई, और वहां तक पहुंचाने के लिए रोड भी बना दी गई। संत श्री छोटे सरकार जिस दिल्ली दरबार की बात किया करते थे, उस दिल्ली दरबार का निर्माण हो गया था। 


उसी जगह भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद संत श्री छोटे सरकार से मिलने पहुंचे। कालांतर में उसी  जगह संत श्री छोटे सरकार ने भगवान का भजन करते-करते भगवत धाम को प्रयाण किया। आज भी दिल्ली में यमुना नदी के किनारे निगम बोध घाट पर उन संत का स्थान बना हुआ है, जहां प्रतिदिन हजारों लोग संत श्री छोटे सरकार की समाधि का दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। 


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