राजा अचलदास खींची और रानी उमादे की प्रेम कहानी - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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मंगलवार, 23 जुलाई 2024

राजा अचलदास खींची और रानी उमादे की प्रेम कहानी

राजा अचलदास खींची और रानी उमादे की प्रेम कहानी


अचलदास खींची मालवा के गढ़ गागरोन के अंतिम नरेश थे,  अचलदास खींची का विवाह मेवाड़ के महाराणा कुंभा की बहन लाला मेवाड़ी के साथ हुआ था। महाराणा कुंभा जैसे शक्तिशाली राजा की बहन लाला मेवाड़ी एक दबंग महिला थी। जब लाला मेवाड़ी विवाह करके राजा अचलदास खींची के साथ रहने लगी, तब उन्होंने राजा से कहा कि, आपका विवाह मेवाड़ जैसे शक्तिशाली राज्य में हुआ है, इसलिए अब आपको और कहीं पर विवाह करने की आवश्यकता नहीं है। 


राजा अचलदास खींची ने भी मेवाड़ जैसे शक्तिशाली राज्य की कन्या की बात टालना उचित नहीं समझा और उन्होंने लाला मेवाड़ी के अलावा किसी अन्य स्त्री से विवाह नहीं किया। एक दिन अचलदास खींची अपने दरबार में बैठे थे, उनके दरबार में मारवाड़ से दो भाई बहन आए जो की कलाकार थे, उन दोनों ने दरबार में अपनी संगीत कला का प्रदर्शन किया और अपने संगीत से पूरे दरबार को मंत्र मुक्त कर दिया। राजा अचलदास खींची उनकी कला से बहुत प्रभावित हुए। 

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राजा बोले मैंने इतने सालों से सुना था कि मारवाड़ की लड़कियां सर्वगुण संपन्न होती है, लेकिन आज मैंने देखा भी लिया। वाकई भगवान ने मारवाड़ की स्त्रियों को 36 गुणों से संपन्न बनाया है। वह लड़की बोलने की कला में भी बहुत चतुर थी, उसने राजा से कहा यदि आपको मारवाड़ की लड़कियां सर्वगुण संपन्न लगतीं हैं, तो आप किसी मारवाड़ की राजकुमारी से विवाह क्यों नहीं करते। 


अचलदास खींची तो स्वयं एक से अधिक विवाह करना चाहते थे, परंतु अपनी पटरानी लाला मेवाड़ी के दबाव में वह ऐसा कर नहीं पाते थे, परंतु वे ऐसी बात सबके सामने दरबार में नहीं बोल सकते थे। राजा अपने हृदय के भाव को छुपाते हुए उस लड़की से बोले हम विवाह करने को तैयार है, अगर आपकी नजर में कोई राजकुमारी हो तो हमें जरूर बताना। 


वह लड़की बोली महाराज हमारे बीकानेर के पास जांगडू रियासत की राजकुमारी उमादे बेहद सुंदर और सर्वगुण  संपन्न है, क्यों नहीं आप राकुमारी उमादे से विवाह करें, वह मेरी सहेली भी है, अगर मैं उससे आपके विषय में बात करूंगी तो वह अवश्य ही मान जाएगी। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा आप जाकर राजकुमारी से बात कीजिए, यदि वे राजी हो तो हम अवश्य उनसे विवाह करेंगें। 


अब राजा अपनी पटरानी लाला मेवाड़ी के पास पहुंचे और उन्हें दरबार में घटित हुई सारी बात बताई। राजा ने कहा मैंने दरबार में सबके सामने एक और विवाह करने का वचन दे दिया है, अतः मुझे केवल एक और विवाह करने की अनुमति दे दीजिये। लेकिन लाला मेवाड़ी नहीं मानी राजा ने जैसे-तैसे करके अपनी पटरानी को समझाया। तब पटरानी लाला मेवाड़ी बोली आप एक और विवाह कर सकते हैं, परंतु मेरी एक शर्त है, आप जिस भी राजकुमारी से विवाह करेंगे, उनसे विवाह के बाद कभी नहीं मिलेंगें और ना ही उनसे कभी बात करेंगें तथा उनका रहने का इंतजाम भी आपको अलग महल में करना होगा जहां पर आप कभी नहीं जाएंगे। 


राजा अचलदास खींची ने दरबार में दिए हुए अपने वचन का मान रखने के लिए अपनी पटरानी लाला मेवाड़ी की यह शर्त मान लेते हैं


सब कुछ तय हो गया राजा अचलदास खींची गागरोन से बीकानेर विवाह करने के लिए जाते हैं, जब उन्होंने राजकुमारी उमादे को देखा तो उन्हें देखते ही रह गए, राजकुमारी की सहेली ने जितना बताया था राजकुमारी उससे कहीं अधिक सुंदर थी। पहले के जमाने में जब राजा महाराजा की बारात जाती थी, तो ससुराल में कई महीने रुकती थी, इसके अलावा आने-जाने के दौरान मार्ग मैं भी बारातें रुकती रुकती चलती थी, इसमें कई महीनो का समय लग जाता था क्योंकि उस समय बारातें ऊंट-घोड़े पर चलती थी, कुछ समय चलने के बाद पशु थक जाते थे इसलिए लंबी दूरी की यात्राओं के दौरान बारातें पशुओं को विश्राम देते हुए रुकते रुकते ही चलती थी। 


राजा अचलदास खींची ने अपनी बारात को ससुराल में साल भर से अधिक समय के लिए रोक लिया, राजा अपनी नई नवेली दुल्हन से बहुत प्रेम करते थे, वे जानते थे, कि गागरोन पहुंचने के बाद उन्हें शर्त के अनुसार अपनी नई रानी से अलग होना पड़ेगा, इसलिए वे अधिक से अधिक समय अपनी नई रानी के साथ बिताना चाहते थे। उधर गागरोन में एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने पर जनता अपने राजा और नयी रानी को देखने के लिए आतुर होने लगी। पटरानी लाला मेवाड़ी जो गागरोन का शासन संभाल रही थी, वह भी राजा को वापस लौट आने के लिए अब तक कई पत्र लिख चुकी थी, परंतु राजा की ओर से उन्हें अबतक कोई जवाब नहीं मिला था। 


अब लाला मेवाड़ी ने अपने राज-पुरोहित को राजा की सुध लेने जांगडू भेजा। जांगडू पहुंचकर राजपुरोहित ने देखा की महाराज अपनी ससुराल में मौज कर रहे हैं। राजपुरोहित ने राजा से कहा, महाराज अब आपको अपने राज्य लौट आना चाहिए, राजा का अधिक समय तक अपने राज्य से दूर रहना उचित नहीं है। राजा बोले,  राजपुरोहित जी, राजाओं की बारात तो ससुराल में कुछ समय रूकती ही हैं, इसमें कौन सी बड़ी बात है।  राजपुरोहित बोले, परंतु महाराज आपको यहाँ एक वर्ष से अधिक समय हो गया है, अब आपको शीघ्र अपने राज्य लौट आना चाहिए। यदि आपके ना लौटने का कोई अन्य कारण हो, तो मुझे बताइए, मैं अवश्य इसका कोई उपाय करूंगा। 


महाराज ने राजपुरोहित को अपनी हृदय की बात बताई, महाराज बोले यदि वह गागरोन पहुंच जाएंगे तो उन्हें शर्त के अनुसार नई रानी से अलग होना पड़ेगा, राजपुरोहित सारा माजरा समझ गए। वे बोले महाराज आप यहां जांगडू से तो प्रस्थान कीजिए, बाद में मार्ग में रुकते-रुकते चलिए। राजा अचलदास खींची राजपुरोहित की बात मान गए, उन्होंने अपनी नई-नवेली रानी के साथ जांगडू से प्रस्थान किया। राजा धीरे-धीरे रुकते रुकते गागरोन की ओर बढ़ने लगे, गागरोन पहुंचते पहुंचते उन्हें एक वर्ष का समय और लग गया। 


राजा अचलदास खींची अपने वचन के पक्के थे, गागरोन पहुंचकर उन्होंने रानी उमादे के लिए एक नया महल बनवाया और स्वयं अपनी पटरानी लाला मेवाड़ी के साथ रहने लगे। वचन के अनुसार महाराज रानी उमा दे से न तो कभी मिलते थे और न हीं उनसे कभी बात करते थे। सात साल बीत गए रानी उमादे ना तो कभी राजा से मिली और ना ही उनसे कभी कोई बात की, वे अपने अलग महल में दासियों के साथ अकेली ही रहती थी। 


एक दिन रानी उमादे की वह सहेली उनसे मिलने गागरोन पहुंची जिसने राजा अचलदास खींची से उनका विवाह करवाया था। बातों ही बातों में उसे पता चला की रानी उमड़े यहां बहुत दुखी रहती है। सात साल से अधिक समय हो गया, लेकिन महाराज उनसे मिलने तक नहीं आए, वह बोली मेरे पास यहां बात करने को दासियों के अलावा और कोई नहीं है। रानी उमड़े ने अपनी सहेली से कहा तुमने यहां मेरा विवाह करवाकर मुझे दुख के सागर में धकेल दिया है। मुझे तो यहां पहुंचने के बाद मालूम हुआ की महाराज ने पटरानी लाला मेवाड़ी को वचन दिया था, कि मुझसे विवाह करने के बाद वह मुझे अलग महल में रखेंगे और मुझसे कभी नहीं मिलेंगे। 


रानी उमादे की वह सहेली बहुत चतुर थी। उसने रानी से कहा कि आप बिल्कुल चिंता ना करें, मैं कुछ ऐसा करूंगी जिससे महाराज स्वयं चलकर आपके पास आ जाएंगे। रानी की सहेली ने एक अफवाह फैलाई की रानी उमादे के पास एक ऐसा सुंदर हार है, जैसा दुनिया में किसी के पास नहीं। कुछ ही दिनों में यह खबर पटरानी लाला मेवाड़ी के पास पहुंची। दुनिया का सबसे सुंदर हार उमादे के पास है, यह सुनकर पटरानी लाला मेवाड़ी को ईर्ष्या होने लगी। 


लाला मेवाड़ी स्वयं के लिए वैसा ही हार बनवाना चाहती थी, इसलिए हार को एक बार देखने के लिए उन्होंने रानी उमादे को पत्र लिखा। पत्र के जवाब में उमादे की सहेली ने लिखा, आपको वह हार एक दिन के लिए दे दिया जाएगा परंतु उसके बदले में राजा अचलदास खींची एक दिन के लिए रानी उमादे के पास आकर रहेंगे। पटरानी लाला मेवाड़ी इस बात के लिए राजी हो गई, और उन्होंने राजा को एक दिन के लिए रानी उमादे के पास रहने की अनुमति दे दी। राजा को भी आश्चर्य हुआ की रानी लाला मेवाड़ी ने उन्हें रानी उमादे से मिलने की अनुमति कैसे दे दी


वर्षों बाद जब राजा अपनी रानी उमादे से मिले तो उन दोनों की आंखों में प्रेम केअश्रु निकल आए थे। वर्षो बाद दोनों ने एक दिन साथ बिताया। एक दिन बीतने के बाद पटरानी लाला मेवाड़ी की दासियाँ राजा को बुलाने के लिए आ गई। महाराज जब वापस जा रहे थे, तो रानी उमादे की सहेली उन दासियों से बोली, तुम सब हमारे राजा को ले जा रही हो परंतु हमें हमारा हार तो वापस लौटा दो, यह सुनकर दासियों ने रानी की सहेली को रानी का हर वापस लौटा दिया। यह देखकर राजा आश्चर्यचकित रह गए, उन्होंने रानी उमादे की सहेली से पूछा, यह हार की क्या बात है ? मुझे विस्तार से बताओ। 


रानी उमादे की सहेली ने वह हार राजा को लहराते हुए दिखाया और कहा इस हार के बदले में हमने गागरोन के राजा को एक दिन के लिए खरीदा था, गागरोन के राजा की कीमत एक हार है। यह बात राजा अचलदास खींची के हृदय में गहराई तक चुभ गई। 


राजा क्रोध में भरकर पटरानी लाला मेवाड़ी के पास पहुंचे और उनसे बोले, रानी मैंने आपको दिया गया वचन कभी नहीं तोड़ा, सात साल तक मैं रानी उमादे से नहीं मिला। लेकिन आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हैं, आप मेरी कीमत कैसे लगा सकती हैं, क्या अपने गागरोन के राजा को इतना तुच्छ समझा है, कि उसे एक हार के बदले में भी ख़रीदा जा सकता है. ऐसा करके आपने मेरे आत्म सम्मान को बहुत गहरी चोट पहुंचाई है, इसलिए अब मैं आपके पास एक दिन भी नहीं रहूँगा। पटरानी लाला मेवाड़ी ने राजा को मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन राजा ने उनकी एक न सुनी, इस घटना के बाद राजा अचलदास खींची रानी उमादे  के महल में उनके साथ रहने लगे, इसके बाद राजा अचलदास खींची अपने जीवन काल में कभी भी पटरानी लाला मेवाड़ी के महल में नहीं गए। 


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