पाँच पांडव और भगवान भोलेनाथ की अध्बुध कहानी
महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद सभी पाँचो पांडव युद्ध में हुए भीषण संहार के पाप से मुक्त होना चाहते थे, इसके लिए वे सभी भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। अपने पाप से मुक्त होने के लिए सभी पांडव भगवान शिव के दर्शन करने के लिए काशी पहुंचे, लेकिन भगवान शिव पांडवों से नाराज थे, इसलिए वे उन्हें वहाँ नहीं मिले।
इसके बाद पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पहुंचे, लेकिन भगवान शिव हिमालय से अद्रश्य होकर केदार घाटी जा पहुंचे। पांडव भी भगवान् शिव पीछा करते हुए केदार घाटी जा पहुंचे। तब भगवान शिव ने एक बैल का रूप धारण कर लिया और घाटी में विचरने वाले अन्य पशुओं में मिल गए।
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पांडवों को संदेह हो गया की भगवान शिव ने पशु का रूप धारण कर लिया है, अतः भीम ने अतिविशाल रूप धारण किया और दो पहाडों पर पैर फैलाकर खड़े हो गए। अन्य पांडव सभी पशुओं को भीम की तरफ हाँकने लगे, अन्य सभी पशु तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए, परन्तु बैल का रूप धारण किए हुए भगवान शिव, भीम के पैरों के नीचे से निकलने को तैयार नहीं हुए और वे भूमि में अंतर्ध्यान होने लगे।
यह देख कर भीम बैल पर झपटे और उन्होंने बैल की पीठ को पकड़ लिया तथा बैल को पूरी तरह जमीन में धंसने से रोक दिया। उसी समय उस बैल की पीठ शिवलिंग के रूप में परिवर्तित हो गयी। यही शिवलिंग श्री केदारनाथ शिवलिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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पांडवों की भक्ति और दृढ़संकल्प को देखकर भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने पांडवों को दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद देकर युद्ध में हुए भीषण संहार के पाप से मुक्त कर दिया। बाद में पांडवों के प्रपोत्र जन्मेजय ने इस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जिसे आज श्री केदारनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
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