ढोला मारू की प्रेम कहानी - Love Story in Hindi
11 वीं सदी की बात है, उस समय राजस्थान के बीकानेर क्षेत्र को जांगलू प्रदेश के नाम से जाना जाता था। उस समय राजस्थान में हर कुछ सालों में भीषण अकाल पड़ते थे। अकाल के दौरान मनुष्यों और पशु पक्षियों के लिए अन्न जल के बहुत कमी हो जाया करती थी, जिससे सभी जीवो के प्राणों पर संकट उत्पन्न हो जाता था। इस प्रकार के भीषण अकाल से बचने के लिए जांगलू प्रदेश के लोग अक्सर अपने घरों को छोड़कर मालवा की ओर प्रस्थान किया करते थे। मालवा प्रदेश को नदियों की भूमि कहा जाता है, वहां बहुत सी नदियां बहती है। इसलिए भीषण अकाल के दौरान भी वहां कभी पानी की कमी नहीं होती।
ऐसे ही एक अकाल के समय जांगलू प्रदेश की पूंगलगढ़ रियासत के राजा पिंगल अपने परिवार और पशुओं को साथ लेकर मालवा प्रदेश की एक रियासत नरवरगढ़ पहुंचे। नरवरगढ़ के राजा सोढा सिंह, राजा पिंगल के बहुत अच्छे मित्र थे, अपने मित्र को आया देखकर सोढा सिंह ने उनका हृदय से स्वागत किया। अकाल के दौरान दोनों मित्रों ने बहुत लंबा समय साथ में बिताया। एक दिन राजा पिंगल को समाचार प्राप्त हुआ कि उनके प्रदेश में वर्षा हो चुकी है और अकाल समाप्त हो चुका है। यह समाचार पाते ही राजा पिंगल अपने राज्य को वापस लौटने की तैयारी करने लगे।
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परंतु राजा सोढा सिंह यह नहीं चाहते थे, कि उनका मित्र वापस लौटकर उन्हें भूल जाए, इसलिए वे अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलना चाहते थे। अतः उन्होंने अपने तीन वर्षीय पुत्र सालेह कुमार का विवाह राजा पिंगल की डेढ़ वर्ष पुत्री मारवणी से करने का प्रस्ताव रखा। राजा पिंगल ने अपने मित्र का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। सालेह कुमार को सभी प्रेम से ढोला कहते थे तथा राजकुमारी मारवणी को प्रेम से मारू के नाम से पुकारा जाता था।
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दोनों मित्र राजाओं ने अपनी सन्तानो का विवाह बहुत धूम-धाम से किया। विवाह का उत्सव कई हफ्तों तक चला। ऐसा कहा जाता है की ढोला-मारू के विवाह भोज में 900 मण मिर्ची का प्रयोग किया गया था, और अन्न तो इतना लगा था जिसका हिसाब लगाना भी असंभव था। ढोला और मारु का बाल विवाह हुआ था, उस समय की प्रथा के अनुसार जब भी बाल विवाह किया जाता था, तो लड़की ससुराल में ना जाकर अपने माता-पिता के साथ ही रहती थी और लड़की के वयस्क होने पर उसका पति उसे लेने आता था। इसलिए प्रथा के अनुसार मारु अपने माता-पिता के साथ पूंगलगढ़ लौट गई।
मारु को बचपन से ही बता दिया गया था कि उसका विवाह हो चुका है, और जब वह बड़ी हो जाएगी तब उसका पति उसे लेने आएगा। उधर नरवरगढ़ में कुछ वर्षों बाद ढोला के माता-पिता की मृत्यु हो जाती है, और 6 वर्ष की अल्प आयु में ही ढोला नरवरगढ़ का राजा बन जाता है। कुछ वर्षों बाद ढोला जवान होकर एक प्रतापी राजा बनता है, वह बचपन में मारु के साथ हुए अपने विवाह को भूल जाता है। सोलह वर्ष की आयु में ढोला मालवा प्रदेश की दूसरी रियासत की राजकुमारी मालवणी से विवाह कर लेता है। विवाह के बाद ढोला अपने राज्य को संभालने में व्यस्त हो गया और अपनी रानी मालवणी के साथ आनंद पूर्वक जीवन यापन करने लगा।
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उधर मारु अभी भी अपने पति के आने का इंतजार कर रही थी, वह इस बात से बिलकुल बेखबर थी, कि उसके पति ढोला ने एक और विवाह कर लिया है तथा वह अपने पहले विवाह को भूल चुका है। ढोला के विवाह को कुछ वर्ष बीत जाते हैं, उधर 17 वर्ष की मारू अपने पति ढोला के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। बहुत वर्ष बीत चुके थे, ना तो ढोला उसे लेने आया और ना ही उसका कोई सन्देश आया, इसलिए मारू अब उदास रहने लगी थी। उस समय की प्रथा के अनुसार एक बार लड़की का विवाह हो जाने के बाद वह जीवन भर उस विवाह को निभाती थी।
रिवाज के अनुसार विवाह के बाद वधु के वयस्क हो जाने पर, वधु पक्ष उसे ले जाने के लिए वर पक्ष से विनती नहीं करता था, बल्कि पति को ही स्वयं आकर अपनी पत्नी को ले जाना होता था। इसलिए मारु और उसके परिवार वाले वधु को ले जाने के लिए ढोला से किसी प्रकार का संपर्क नहीं कर सकते थे। लेकिन ढोला को तो यह याद ही नहीं था, कि उसका एक और विवाह हो रखा है। इस प्रकार एक-दो वर्ष का समय और बीत गया, और ढोला का कोई सन्देश नहीं आया।
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उधर मारू अपने पति ढोला का इंतजार करते-करते अधीर हो चुकी थी, वह किसी भी प्रकार ढोला से संपर्क करना चाहती थी। उस समय केवल पत्राचार के माध्यम से ही संपर्क किया जा सकता था, इसलिए मारू ने अपने माता-पिता से छिपकर ढोला को एक पत्र लिखा। जब वह पत्र नरवरगढ़ पहुंचा, उस समय ढोला किसी कार्य से अपनी रियासत से बाहर गया हुआ था, इसलिए वह पत्र रानी मालवणी को मिल गया। पत्र पढ़ते ही रानी मालवणी को ढोला के पहले विवाह के बारे में सब कुछ पता चल गया।
रानी मालवणी ने एक गुप्तचर पूंगलगढ़ भेज कर राजकुमारी मारू के बारे में पता करवाया। गुप्तचर ने जब पहली बार राजकुमारी मारू को देखा तो वह उन्हें देखता ही रह गया, राजकुमारी मारू किसी देव कन्या के समान सुंदर थी, और पूंगलगढ़ के सभी लोग राजकुमारी मारू के गुणों की तारीफ करते नहीं थकते थे। जब दूत ने नरवरगढ़ लौट कर यह सब रानी मालवणी को बताया तो वह घबरा गई।
रानी मालवणी ने सोचा यदि ढोला और मारू का मिलन हो गया, तो ढोला के जीवन में उसका महत्व खत्म हो जाएगा। यह सोचकर रानी मालवणी ने उस पत्र को फाड़ कर फेंक दिया और अपने डाक विभाग के कर्मचारियों को आदेश दिया की पूंगलगढ़ से जो भी पत्र आए वह सबसे पहले रानी मालवणी को दिया जाएगा, राज्य के कर्मचारी अपनी रानी के आदेश की अवहेलना नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने आदेश पालन करने का वचन दिया।
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उधर राजकुमारी मारू अपने पत्र के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी, कुछ महीनो का समय बीत गया लेकिन ढोला की ओर से कोई उत्तर नहीं आया। अधीर हो चुकी राजकुमारी मारू ने एक और पत्र ढोला को लिखा। जब वह पत्र नरवरगढ़ पहुंचा, तो डाक विभाग के कर्मचारियों ने वह पत्र सीधा रानी मालवणी को दे दिया। रानी मारवाड़ी ने उसे पत्र को भी फाड़ कर फेंक दिया।
उधर मारू अपने दूसरे पत्र के जवाब की प्रतीक्षा कर रही थी, लेकिन ढोला की ओर से कोई जवाब नहीं आया। अब राजकुमारी मारू बहुत अधिक दुखी रहने लगी, उसने 2 से 3 वर्षों के अंतराल में एक-एक करके 18 पत्र लिखकर नरवर भेजें, परंतु उसे किसी पत्र का उत्तर नहीं मिला। अब राजकुमारी मारू 21 वर्ष की हो चुकी थी, अपने पति के विरह में व्याकुल मारू अब तनाव ग्रस्त रहने लगी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। ना तो ढोला उसे लेने आ रहा था और और ना ही उसके पत्रों का जवाब दे रहा था।
एक दिन राजकुमारी मारू बगीचे में अकेली बैठी-बैठी ढोला के विरह में दुख भरी आवाज में गीत गा रही थी। उसकी आवाज में इतना दुख था, जिसे सुनकर पत्थर भी रो पड़े। उसी समय ढाडी जाति के कुछ लोग वहां से गुजर रहे थे, ढाडी जाति के लोग संगीत प्रेमी होते थे, वे संगीत के मर्म को जानने वाले लोग थे। जब उन्होंने राजकुमारी मारू का दर्द भरा गीत सुना तो उनकी आत्मा तक हिल गई, वे लोग सोचते हैं, यह युवती कौन है और इतने दर्द भरे गीत क्यों गा रही है।
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वे लोग जाकर राजकुमारी मारू से बात करते हैं, राजकुमारी अपने हृदय की बात किसी से नहीं कहती थी, लेकिन जब ढाडी जाती के लोगों ने उनकी उदासी का कारण पूछा, तो वह स्वयं को रोक नहीं पाई। राजकुमारी मारू ने अपने हृदय का सारा दुख उन लोगों को कह सुनाया। राजकुमारी ने बताया कि वह पूंगलगढ़ की राजकुमारी है, उसका विवाह डेढ़ वर्ष की आयु में नरवरगढ़ के राजा ढोला से किया गया था, तब से लेकर आज तक वह ढोला के आने का इंतजार कर रही है। मारू ने बताया वह अब तक ढोला को 18 पत्र भी लिख चुकी है, लेकिन अब तक उसे किसी भी पत्र का उत्तर नहीं मिला, पता नहीं ढोला को वह सभी पत्र मिले भी है या नहीं।
राजकुमारी बोली, यदि आप लोग मेरे दुख को समझते हैं, तो कृपा करके मेरा एक काम कीजिए। मेरा संदेश नरवर के राजा ढोला तक पहुंचा दीजिए। मेरे पत्रों का जवाब तो वे नहीं दे रहे हैं, इसलिए आप स्वयं ही जाकर उनसे मिलिए और मेरा संदेश उनको दीजिए, कि आपकी पहली रानी मारू 22 सालों से पूंगलगढ मैं आपका इंतजार कर रही है। यदि आप मेरा यह काम कर देंगे तो मैं जीवन भर आपके एहसानमंद रहूंगी। यह सब सुनकर ढाडी जाति के लोगों को राजकुमारी पर दया आ गई, और उन्होंने राजकुमारी का संदेश नरवरगढ़ के राजा ढोला तक पहुंचने का वचन दिया।
कुछ दिनों की यात्रा करके वे लोग नरवरगढ़ में राजा ढोला के महल पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचकर वे लोग गीत गाने लगते हैं, और गीतों के माध्यम से ढोला को उनकी पहली पत्नी के बारे में बताते हैं, और उनकी सुंदरता का वर्णन करते हैं। उनके गीतों को सुनकर ढोला उन लोगों को अपने महल में बुलाते हैं और उनसे इस प्रकार के गीतों को गाने का कारण पूछते हैं।
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तब वे लोग राजा को स्पष्ट शब्दों में बताते हैं, कि किस प्रकार उनकी पहली रानी 22 सालों से उनका इंतजार कर रहीं हैं और उन के विरह में व्याकुल हो रही हैं। वे लोग बताते हैं की राजकुमारी मारू आपको अब तक 18 पत्र भी लिख चुकी है, परंतु आपने उनके किसी पत्र का जवाब नहीं दिया। राजन यदि आप उनसे मिलना नहीं चाहते हैं तो कम से कम उनके पत्र का जवाब तो दे ही सकते हैं, इस तरह से 22 वर्षों तक किसी को इंतजार करवाना किसी प्रकार भी उचित नहीं है।
जब राजा ढोला ने यह सब बातें सुनी तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। ढोला ने कहा मुझे उन राजकुमारी का कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ और ना ही मुझे यह याद है कि उनके साथ मेरा विवाह हुआ था।ढाडी जाति के लोगों ने कहा कि वह राजकुमारी झूठ नहीं बोल सकती, हमने उस राजकुमारी की आंखों में सच्चाई देखी है, उनकी विरह वेदना को महसूस किया है, उनके हृदय का दर्द सुना है, वह युवती झूठ नहीं बोल सकती। आप अपने डाक विभाग के कर्मचारियों से मालूम कीजिए कि उन्हें पत्र प्राप्त हुए हैं या नहीं।
यह सब सुनकर ढोला अपने डाक विभाग कर्मचारियों से सख्ती से पूछताछ करता है, राजा के पूछने पर वे लोग सब सच-सच बता देते हैं कि उन्हें पूंगलगढ़ से 18 पत्र प्राप्त हुए थे, परंतु रानी मालवणी का यह आदेश था की पूंगलगढ़ से जो भी पत्र आए वे सब उन्हें दे दिए जाएं, इसलिए हमने वे सभी पत्र रानी मालवणी तक पहुँचा दिए थे।यह सब सुनकर ढोला अत्यंत क्रोधित हो जाता है, और सीधे रानी मालवणी के पास पहुंचता है और उनसे कहता है मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि आप सब कुछ जानते हुए मेरे पहले विवाह में इस प्रकार बाधा डालेंगीं।
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ढोला ने उसी दिन पूंगलगढ़ के लिए एक दूत रवाना किया और राजकुमारी मारू के लिए संदेश भेजा की नरवरगढ़ के राजा ढोला कुछ ही दिनों में उन्हें लेने आएंगे। ढोला के आने की खबर सुनते ही राजकुमारी मारू खुशी से झूम उठी। अगले दिन जब ढोला राजकुमारी मारू को लाने के लिए निकलने लगे तो रानी मालवणी ने उन्हें कुछ बहाना बनाकर रोक दिया। ढोला जब भी राजकुमारी मारू को लाने के लिए निकलते तो मालवणी कुछ ना कुछ बहाना बना कर उन्हें रोक देती, इसी प्रकार 6 महीने और बीत गए।
एक दिन आधी रात के समय जब रानी मालवणी सो रही थी, तब राजा ढोला एक ऊंट पर सवार होकर राजकुमारी मारू को लेने के लिए निकल पड़े। कुछ दिनों का सफर तय करके वे पूंगलगढ़ पहुंच गए। पूंगलगढ़ में ढोला का ऐसा भव्य स्वागत किया गया, जिसकी मिसाल आज भी राजघरानों में दी जाती है। जब ढोला ने राजकुमारी मारू को पहली बार देखा तो उन्हें देखते ही रह गए, राजकुमारी मारु किसी देवकन्या के समान सुन्दर लग रहीं थी। ढोला ने मारू के साथ अपने ससुराल में कई दिन खुशी-खुशी बताएं, इसके बाद उन्होंने राजकुमारी मारु के पिता राजा पिंगल से उन्हें ससुराल ले जाने की अनुमति मांगी, राजा पिंगल ने सहर्ष इसकी अनुमति दे दी।
ढोला और मारू ऊंटों के काफिले के साथ नरवरगढ़ की ओर रवाना हुए। पूंगलगढ़ के एक मंत्री का बेटा जिसका नाम उमर-सुमरा था, वह राजकुमारी मारू से विवाह करना चाहता था। इसलिए उसने राजा ढोला को रास्ते में ही मारकर राजकुमारी मारू को हासिल करने की योजना बनाई। वह ढोला-मारू के रास्ते में महफिल सजा कर बैठ गया, जब ढोला और मारू उसे रास्ते से गुजरे, तो उसने ढोला-मारू के काफिले को मनुहार करने के लिए रोक लिया। ढोला ने मारू को ऊंट पर ही बैठे रहने दिया और स्वयं ऊंट से उतरकर उमर-सुमरा के पास चला गया।
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उस जमाने में बारातियों का स्वागत अफीम से किया जाता था, जिसे अमल की मनुहार कहते थे। ढोला उमर-सुमरा के साथ अमल की मनुहार लेने लगा। ढोला-मारू के काफिले में राजकुमारी मारू के परिवार का विश्वास पात्र एक ढोली भी जा रहा था, वह उमर-सुमरा के षड्यंत्र को समझ गया, वह समझ गया की उमर-सुमरा ढोला को मारना चाहता है। ढोली ने राजकुमारी मारू को इस षड्यंत्र के बारे में बता दिया, यह सुनकर मारू ने तुरंत अपने ऊंट को एडी मारी, जिससे ऊँट तेजी से भागने लगा।
अचानक दौड़ते हुए ऊंट को देखकर ढोला उसे रोकने के लिए उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। जब ढोला दौड़ते हुए ऊंट के पास पहुंचा, तो मारू ने उससे कहा कि यह एक धोखा है उमर-सुमरा आपको मारना चाहता है, जल्दी से ऊंट पर चढ़ जाओ। मारू की बात सुनकर ढोला तुरंत ऊंट पर चढ़ गया। फिर वह ऊंट दौड़ता हुआ ढोला के राज्य नरवरगढ़ जाकर ही रुका। नरवरगढ़ पहुंच कर अब दोनों सुरक्षित थे, वहां पर उन दोनों का भव्य स्वागत सत्कार किया गया, अब राजकुमारी मारू राजा ढोला की रानी बनकर नरवरगढ़ में सुख पूर्वक रहने लगी।
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