हिंदी कहानी कुँए का मालिक और उसकी चालाकी
Moral Stories for Childrens in Hindi
एक समय की बात है, गर्मियों का मौसम था। एक किसान ने अपने सारे खेतों में मक्के की फसल लगाई। फसल अभी थोड़ी ही बड़ी हुई थी, लेकिन वर्षा नहीं हो रही थी, जिसके कारण उसकी खड़ी फसल पर संकट आ गया था। यदि सही समय पर पानी का इंतजाम नहीं हुआ तो उसकी सारी फसल नष्ट हो सकती थी, इसलिए वह किसान बहुत परेशान था। उस किसान के खेत से कुछ ही दूरी पर एक कुआं था, जिसमें हमेशा लबालब पानी भरा रहता था। किसान ने सोचा उस कुएं से पानी लेकर मैं अपने खेतों की सिंचाई कर सकता हूं, इसलिए वह उस कुँए के मालिक से कुँए के पानी को इस्तेमाल करने की आज्ञा लेने पहुँचा।
कुँए के मालिक ने किसान को पानी देने से साफ मना कर दिया, कुँए का मालिक बोला यदि तुम्हें इस कुएं से पानी लेना है, तो तुम्हें पहले इस कुएं को खरीदना पड़ेगा। किसान ने कुछ देर विचार किया, किसान ने सोचा हर साल बारिश की समस्या तो होती ही है, कभी पानी बरसता है कभी नहीं बरसता। यदि मैं कुआं खरीद लूंगा तो मेरी बारिश पर निर्भरता खत्म हो जाएगी और फिर मैं मनचाही फसलें अपने खेतों में बो सकता हूं, यह सोचकर किसान कुआं खरीदने के लिए तैयार हो गया।
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दोनों के बीच एक रकम तय हो गई, किसान के पास उस समय उतने पैसे नहीं थे, किसान बोला मैं दो दिन में तुम्हें सारा पैसा चुकाकर कुँए को खरीद लूंगा। कुँए का मालिक इस बात पर सहमत हो गया। अब किसान रकम के इंतजाम में जुट गया। उसने अपने मित्रों से और रिश्तेदारों से पैसे उधार लेकर रकम का इंतजाम कर लिया। अब वह पूरी तरह से निश्चिंत हो चुका था, अगले दिन उसे कुआं खरीदने जाना था, वह बेसबरी से सुबह होने का इंतजार कर रहा था।
अगले दिन सुबह होते ही किसान उस व्यक्ति के पास कुआं खरीदने पहुंच गया, किसान ने उस व्यक्ति को तय की हुई राशी देकर कुआँ खरीद लिया। अब वह कुआं उस किसान का हो चुका था, तो किसान ने उस कुँए से पानी निकालने में देर नहीं की। जैसे ही किसान उस कुँए से पानी निकालने के लिए कुएं पर पहुंचा तो उस व्यक्ति ने किसान को रोक दिया। वह व्यक्ति बोला तुम इस कुएं से पानी नहीं निकाल सकते, मैंने तुम्हें केवल कुआं बेचा है, कुँए का पानी अभी भी मेरा है।
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यह सुनकर किसान मायूस हो गया और न्याय के लिए राजा के दरबार में शिकायत करने पहुंचा। राजा ने उस किसान की शिकायत को ध्यान से सुना, फिर राजा ने उस व्यक्ति को दरबार में बुलाया जिससे किसान ने कुआँ खरीदा था। राजा का आदेश सुनते ही वह व्यक्ति दौड़ता हुआ दरबार में उपस्थित हो गया। राजा ने उससे पूछा जब तुमने इस किसान को अपना कुआँ बेच दिया, तो फिर तुम इस कुएं से किसान को पानी क्यों नहीं लेने देते। वह आदमी बोला महाराज हमने कुँए का सौदा किया था, कुँए के पानी का नहीं।
यह सुनकर राजा भी सोच में पड़ गए, उन्होंने सोचा बात तो ठीक ही है, सौदा तो कुएं का हुआ था पानी का नहीं। जब राजा भी उलझन में पड़ गए तब उन्होंने इस समस्या को सुलझाने के लिए अपने एक मंत्री को बुलाया। वह मंत्री बहुत चतुर था, राजा कोई भी फैसला लेने से पहले अपने इस मंत्री की राय अवश्य लेते थे। मंत्री ने आकर सारी समस्या सुनी।
सारी बात समझ कर मंत्री बोला - तुमने किसान को कुआँ बेचा है, लेकिन पानी नहीं। तो तुम्हारा पानी किसान के कुएं में क्या कर रहा है, तुम तुरंत किसान के कुएं से अपना पानी बाहर निकालो। यदि तुम कल तक अपना पानी कुएं से नहीं निकालोगे, तो अपना पानी किसान के कुँए में रखने के लिए तुम्हें 100 सिक्के प्रतिदिन के हिसाब से किसान को किराया देना होगा।
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मंत्री के इतना कहते ही वह व्यक्ति घबरा गया उसने सोचा अब उसकी चालाकी काम नहीं करने वाली, उसने तुरंत राजा से माफी मांगी और माना की कुएं के साथ-साथ कुँए के पानी पर भी किसान का पूरा अधिकार है। यह देखकर राजा ने मंत्री की बुद्धिमानी की तारीफ की और उस व्यक्ति पर किसान से धोखेबाजी करने के लिए भारी जुर्माना लगाया।
सीख - इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है, कि धोखेबाजी और चालाकी से कभी कोई लाभ नहीं होता। सच्चाई और न्याय की हमेशा जीत होती है। जो लोग दूसरों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, वे अंत में खुद ही फंस जाते हैं, जबकि ईमानदारी और सही मार्ग पर चलने वाले लोगों को हमेशा न्याय मिलता है।
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