राजस्थान की लोक देवी श्री करणी माता की कहानी
Hindi Story in Hindi
श्री करणी माता के पिता का नाम मेहाजी किनिया था, तथा माता का नाम देवल देवी था। मेहाजी कीनिया की पांच पुत्रियां थी परन्तु उनके एक भी पुत्र नहीं था। पुत्र प्राप्ति के लिए मेहाजी किनिया ने वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित श्री हिंगलाज माता मंदिर की कठिन यात्रा की। मेहाजी किनिया के भक्ति भाव से प्रसन्न होकर श्री हिंगलाज माता ने उनको दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा, तब मेहाजी कीनिया ने कहा की मैं चाहता हूँ, की मेरा नाम हमेशा चलता रहे, और भविष्य में भी लोग मुझे जाने। श्री हिंगलाज माता ने कहा ऐसा ही होगा और यह कहकर वह अन्तर्धान हो गयी।
उसके बाद मेहाजी की पत्नी देवल देवी को गर्भ रहा और इस बार मेहाजी को पुत्र प्राप्ति की पूरी आशा थी, परन्तु उनकी पत्नी को 21 माह की आश्चर्यजनक रूप से लम्बी गर्भवस्था के बाद 20 सितम्बर 1387 ई को एक कन्या की प्राप्ति हुई। इस कन्या का मुँह चौड़ा, रंग गहरा और शरीर स्थूल था, कन्या का नाम रिघुबाई रखा गया। रिघुबाई एक चमत्कारिक कन्या थी, बालयकाल में उन्होंने अपने पिता को सांप के काटने से मृत होने के बाद जीवित किया था, उन्होंने समय समय पर कई चमत्कार दिखाकर अपनी दैवीय शक्ति का प्रदर्शन किया। जिसके कारण उन्हें दुर्गा देवी का अवतार करणी माता कहा जाने लगा।
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श्री करणीजी का विवाह साठिका गांव में केलूजी बिठू के पुत्र देपाजी के साथ तय किया गया। 1416 में 29 वर्ष की आयु में श्री करणीजी का विवाह देपाजी बिठू के साथ किया गया, परन्तु देपाजी श्री करणीजी के रूप के कारण इस विवाह से खुश नहीं थे। विवाह के बाद मेहाजी कीनिया ने बारात को तीन-चार दिन तक अपने यहां रखकर वर-वधु को विदाई दी, और वर-वधु बारात साथ साठिका गांव के लिए रवाना हुए।
मार्ग में श्री करणीजी ने देपाजी को देवी दुर्गा के रूप में दर्शन दिए और कहा की मैं आपकी सहधर्मिणी अवश्य हूँ, लेकिन मेरा यह जन्म दीन-दुखियो की सेवा और उनकी रक्षा करने के लिए हुआ हैं। मेरा पिछले जन्म में अत्यंत सुन्दर रूप था, जिसके कारण मुझे अपने कर्त्तव्य पूर्ति में बहुत सारी बाधाएं आयी थी, इसलिए इस जन्म में मैंने यह विरुप भौतिक शरीर धारण किया है, ताकि इस जन्म में उन बाधाओं की पुनरावृति न हो। इसलिए आप मुझसे गृहस्त संबंध नहीं रख सकते, अतः आप अपनी गृहस्ती चलाने के लिए मेरी छोटी बहन गुलाबबाई से विवाह कर लेना, वह आपकी गृहस्ती को बहुत अच्छे से संभाल लेगी। ऐसा कहकर श्री करणीजी पुनः अपने मानव रूप में आ गयी, देपाजी को यह सब भ्रम के समान प्रतीत हुआ और वे बारात के साथ मार्ग में आगे बढ़ गए।
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कुछ दिन की यात्रा के बाद बारात साठिका गांव पहुंच गयी। देपाजी के पिता इस विवाह से अत्यंत प्रसन्न थे क्योकि श्री करणीजी के रूप में स्वयं देवी दुर्गा उनके घर में पुत्रवधु के रूप में पधारी थी। कुछ दिन बाद श्री करणीजी ने देपाजी से फिर से कहा की आप गृहस्ती चलाने के लिए मेरी छोटी बहन गुलाबबाई से शादी कर लो। यह सुनकर देपाजी को मार्ग में देवी दुर्गा की कही बात याद आ गयी। देपाजी श्री करणीजी के साथ विवाह करके खुश नहीं थे, इसलिए उन्होंने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, क्योकि उन्होंने गुलाबबाई को देख रखा था, वह बहुत सुन्दर थी। इस प्रकार श्री करणीजी की सहमती से देपाजी और गुलाबबाई का विवाह तय हो गया। 1417 में देपाजी और गुलाबबाई विवाह संपन्न हुआ।
इसके बाद श्री करणीजी जनकल्याण के कार्यों में लग गयी और उन्होंने अपने 151 वर्ष लम्बे जीवनकाल में अनगिनत चमत्कार दिखाए और लोगों का कल्याण किया, जिनके कारण उनकी ख्याति दूर दूर तक फ़ैल गयी। और लोग उन्हें करणी माता कहकर बुलाने लगे। साधारण जनमानस के अलावा उस समय के कई राजपूत राजा और सरदार श्री करणी माता के अनन्य भक्त थे जिनमें से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार है :- जैसलमेर के रावल: चाचगदेव, रावल देवीदास, रावल घड़सी और महारावल जैतसी, मारवाड़ के शासक: राव चूंडा, राव रिड़मल, राव जोधा (जोधपुर राज्य के संस्थापक) और राव बीका (बीकानेर राज्य के संस्थापक), राव बिका के पुत्र राव लूणकरण, राव लूणकरण के पुत्र राव जैतसी, पूंगल के शासक: शेखा भाटी, आदि नाम प्रमुख हैं।
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राव बीका, जो जोधपुर के राव जोधा के पुत्र थे, ने अपने राज्य विस्तार की योजना बनाई। इस दौरान उन्हें पता चला कि करणी माता जैसी महान संत बीकानेर क्षेत्र में रहती हैं। राव बीका ने उनसे मिलकर आशीर्वाद प्राप्त करने का निर्णय लिया। करणी माता ने राव बीका को राज्य स्थापना में मार्गदर्शन दिया और उन्हें बताया कि वे जहां भी अपना राज्य स्थापित करेंगे, वहां समृद्धि और खुशहाली होगी। करणी माता ने उन्हें प्रेरित किया और आशीर्वाद दिया कि उनका राज्य सफल होगा और वह अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाएंगे। राव बीका ने करणी माता के आशीर्वाद से प्रेरित होकर बीकानेर की नींव रखी। उन्होंने बीकानेर के किले और नगर का निर्माण करवाया। करणी माता के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के कारण राव बीका को अपने राज्य की स्थापना में कई महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सफलता मिली। करणी माता ने राव बीका को बताया कि जहां उनके घोड़े के खुर से मिट्टी उड़ेगी, वहीं बीकानेर राज्य की स्थापना होगी। इस निर्देश के अनुसार, राव बीका ने अपनी यात्रा प्रारंभ की और जहां-जहां उनके घोड़े के खुर से मिट्टी उड़ी, वहीं उन्होंने बीकानेर के निर्माण का कार्य शुरू किया।बीकानेर राज्य की स्थापना में करणी माता का आशीर्वाद अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनके आशीर्वाद से राव बीका को आत्मविश्वास और साहस मिला। करणी माता के निर्देश और आशीर्वाद के कारण बीकानेर राज्य ने अपनी नींव मजबूती से स्थापित की और धीरे-धीरे समृद्धि की ओर बढ़ा। बीकानेर राज्य का प्रारंभिक समय करणी माता के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से अत्यंत सफल रहा। उनके आशीर्वाद से राज्य में खुशहाली और समृद्धि आई। करणी माता ने राव बीका को सही मार्ग पर चलने और अपने प्रजा की सेवा करने की प्रेरणा दी। बीकानेर राज्य की स्थापना के बाद भी करणी माता ने अपनी उपस्थिति और आशीर्वाद बनाए रखा। राज्य की उन्नति और विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद और चमत्कारों की कहानियां आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
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एक दिन श्री करणी माता ने अपने परिवार से सभी सदस्यों को बुलाकर कहा की मुझे इस भौतिक शरीर को धारण किये हुए 150 वर्ष हो चुके है इसलिए अब मैं इस भौतिक शरीर को छोड़ना चाहती हूँ। इसलिए अब मैं यहाँ से जैसलमेर जाकर श्री तेमड़ाराय के दर्शन करूंगी, उसके बाद अपनी बहनों से मिलने खारोडा (वर्तमान में सिंध, पाकिस्तान) जाउंगी, और वहाँ से वापस आते समय रास्ते में मैं अपना भौतिक शरीर छोड़ दूंगी। यह सुनकर परिवार के सभी सदस्य दुखी हो गए और श्री करणी माता के साथ चलने की प्रार्थना करने लगे, लेकिन श्री करणी माता ने उन्हें अपने साथ चलने से मना कर दिया। परिवार के अन्य सदस्य तो मान गए परन्तु उनके सबसे बड़े पुत्र पुण्यराज ने साथ में चलने का हट किया। तब श्री करणी माता ने कहा की मेरे ज्योतिर्लिन होने की घटना को देखना तुम्हारे भाग्य में नहीं लिखा है और तुम्हारी आयु 117 वर्ष हो चुकी है, इसलिए तुम्हे मेरे साथ चलने की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन पुण्यराज नहीं माने, जिसके बाद श्री करणी माता ने उन्हें अपने साथ चलने की अनुमति दे दी। इस यात्रा में में श्री करणी माता के साथ उनके पुत्र पुण्यराज, रथवान सरंगिया विशनोई, और एक सेवक थे।
इसके बाद श्री करणी माता ने जैसलमेर पहुंचकर श्री तेमड़ाराय के दर्शन किये, वहाँ पर जैसलमेर के महारावल ने श्री करणी माता का स्वागत किया। जैसलमेर प्रवास के दौरान श्री करणी माता अपने भक्त बन्ना खाती के घर पहुंची और उसे अपनी मूर्ति बनाने के लिए कहा। तब बन्ना खाती ने कहा की मैं जन्म से अँधा हूँ, मैं आपकी मूर्ति कैसे बना सकता हूँ। तब श्री करणी माता ने बन्ना खाती की आँखों में देखा, जिससे उसे सबकुछ दिखाई देने लगा। इसके बाद श्री करणी माता ने बन्ना खाती को वह रूप दिखाया जिसकी मूर्ति बनायीं जानी थी, और मूर्ति बनाकर देशनोक पहुंचाने का आदेश दिया। तब बन्ना खाती ने निवेदन किया की देशनोक बहुत दूर है मैं मूर्ति लेकर वहां कैसे पहुँचूँगा। तब श्री करणी माता ने कहा, मूर्ति पूरी होने के बाद तुम उसे अपने सिर के नीचे रखकर सो जाना, जब तुम्हारी नींद खुलेगी तब तुम स्वयं को देशनोक में पाओगे और फिर बाद में ऐसा ही हुआ। (वर्तमान में देशनोक स्थित श्री करणी माता के मंदिर में वही मूर्ति स्थापित है, जिसे बन्ना खाती ने श्री करणी माता के आदेश पर बनाया था )
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इसके बाद श्री करणी माता खारोडा पहुंची और अपनी बहनों से मुलाकात की, खारोडा से श्री करणी माता ने देशनोक की ओर रवाना हुई, जहाँ मार्ग में गाडियाला और गिरछर के बीच धनेरू की तलाई के पास उन्होंने पड़ाव डाल लिया। अगले दिन सूर्योदय के समय श्री करणी माता ने स्नान करने की इच्छा प्रकट की और अपने पुत्र पुण्यराज को पास के तालाब से पानी लाने के लिए भेज दिया। पुण्यराज को दूर भेजकर श्री करणी माता ने एक पत्थरों की चौकी बनाई और उस पर स्नान करने के लिए बैठ गयी, और रथवान विशनोई से कहा की रथ में एक मटकी रखी है जिसमें कुछ पानी है, उस मटकी को ले आओ और उसका पानी मुझ पर उंडेल दो। जैसे ही रथवान ने श्री करणी माता के ऊपर पानी डाला तो उनके शरीर से एक ज्वाला निकली और उसी पल श्री करणी माता का भौतिक शरीर उस ज्वाला में अद्रश्य हो गया।
जब पुण्यराज पानी लेकर वापस आये, तब रथवान विशनोई ने उन्हें सारी घटना कह सुनाई। उसी समय (आकाशवाणी हुई) और दोनों को श्री करणी माता की आवाज सुनाई दी, की मैंने इतने समय के लिए ही इस भौतिक शरीर को धारण किया था, अब तुम लोग यहाँ से देशनोक पहुँचो, आज से ठीक चौथे दिन मेरा भक्त बन्ना खाती देशनोक में मेरे गुम्भारे के बहार सोता हुआ मिलेगा उसके सिर के नीचे मेरी मूर्ति होगी, उस मूर्ति को मेरे गुम्भारे में स्थापित कर देना। अब से मैं उस मूर्ति में निवास करुँगी और जो मुझे सच्चे दिल से पुकारेगा मैं उसकी प्रार्थना अवश्य सुनूंगी।
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उसके बाद सभी लोग देशनोक पहुंचे, ठीक चौथे दिन बन्ना खाती देशनोक में श्री करनी माता के गुम्भारे के बहार सोता हुआ पाया गया, जिसके सिर के निचे करणी माता की मूर्ति थी। सभी भक्तो ने मिलकर उस मूर्ति को स्थापित किया और गुम्भारे के स्थान पर एक मंदिर बना दिया और उस मंदिर में श्री करणी माता की मूर्ति की पूजा की जाने लगी, जो उस समय से लेकर आज तक निरंतर जारी है।
श्री करणी माता का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जो हमें सेवा, भक्ति और तपस्या का महत्व सिखाता है। उनके चमत्कार और आशीर्वाद आज भी लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। करणी माता का मंदिर और उनकी पूजा अर्चना राजस्थान की संस्कृति और धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
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