श्री कृष्ण भक्त कर्माबाई की कहानी - Krishna Story in Hindi
राजस्थान के नागौर जिले के ग्राम कालवा में एक जाट किसान जीवनराम डूडी के घर 1615 में एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या का जन्म होने पर पिता जीवनराम डूडी को अत्यंत ख़ुशी हुई, उन्होंने उस कन्या का नाम कर्मा रखा। कर्मा को सभी कर्माबाई भी बुलाते थे। जीवनराम डूडी स्वयं एक कृष्णा भक्त थे, अपने घर में उन्होंने कृष्ण भगवान का मदनमोहन जी के नाम से मंदिर बना रखा था, जहाँ वे रोज भगवान कृष्ण की पूजा करते भगवान को भोग लगते तथा भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते थे, यह उनके घर का नित्य का नियम था। इसी प्रकार समय बीतता गया, कर्माबाई रोज अपने पिता को भगवान कृष्ण की पूजा करते देखती, उनको भोग लगाते देखती और भगवान को भोग लगाने के बाद ही वे भोजन ग्रहण करते, यही सब देखते सीखते कर्माबाई का बचपन बीत रहा था।
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कुछ वर्षो के बाद कर्माबाई के पिता कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रा पर जाने लगे, तीर्थयात्रा पर जाने से पहले पिता जीवनराम डूडी ने कर्माबाई को भगवान कृष्ण की पूजा विधि समझाई और कहा की भगवान को भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण करना और घर का ध्यान रखना, इस प्रकार भगवान की पूजा और घर की देखरेख का काम कर्माबाई को सौंपकर उनके पिता कुछ दिनों के लिए तीर्थयात्रा पर चले गए।
अब अगले दिन कर्माबाई ने सुबह जल्दी उठकर कृष्ण भगवान को भोग लगाने के लिए बाजरे का खिचड़ा बनाया। कर्माबाई ने खीचड़े को थाली में डाला उसमे घी और गुड़ मिलाया और कृष्ण भगवान को भोग लगाने के लिए खीचड़े की थाली भगवान के सामने रख दी, और उनसे कहा, हे भगवान आप को जब भी भूख लगे तब आप खीचड़ा खा लेना, तब तक मै घर का दूसरा काम कर लेती हूँ, यह कहकर वह अपने काम में लग गयी।
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कुछ देर बाद उसने आकर देखा की थाली तो वैसी की वैसी राखी है, भगवान ने तो भोग लगाया ही नहीं, उसने सोचा कोई बात नहीं, अभी भगवान को अभी भूख नहीं लगी होगी, कुछ देर बाद खा लेंगे ऐसा सोचकर वह फिर से अपने काम में लग गयी और बीच में बार-बार देखती रही, की भगवान ने भोग लगाया है या नहीं। लेकिन भगवान ने भोग नहीं लगाया।
इस प्रकार दोपहर का समय हो गया अब कर्माबाई को चिंता होने लगी की भगवान ने भोग क्यों नहीं लगाया, क्या खिचड़ा अच्छा नहीं बना या उसमे घी और गुड़ की कमी रह गयी, ऐसा सोचकर उसने खीचड़े में थोड़ा और घी तथा गुड़ मिलाया और थाली लेकर भगवान के सामने बैठ गयी और भगवान को भोग लगाने के लिए विनती करने लगी, लेकिन भगवान ने फिर भी भोग नहीं लगाया।
तब कर्माबाई ने भगवान से कहा की भगवान आप भोग लगा लीजिये आपकी पूजा की और आपके भोग के जिम्मेदारी पिताजी मुझे देकर गए है, अगर आप पिताजी का इंतज़ार कर रहे है, तो आपको भूका ही रहना पड़ेगा, क्योकि पिताजी तो तीर्थयात्रा पर गए है, और कुछ दिनों के बाद ही आएंगे, तब तक आपको मेरे ही हाथ से बना भोजन करना पड़ेगा।
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भगवान मुझे षटरस वयंजन बनाने नहीं आते और ना ही मुझे विधि विधान से पूजा पाठ करना आता है, मुझे तो बस यह बाजरे का खिचड़ा और रूखी सुखी सब्जी रोटी बनानी आती है, आपको कुछ दिन इसी से गुजरा करना पड़ेगा। मैंने आपके खीचड़े में थोड़ा और ज्यादा घी और गुड़ भी डाल दिया है, अब तो भोग लगा लीजिये। इस प्रकार कर्मा बार-बार भगवान से भोग लगाने को विनती करने लगी लेकिन भगवान ने फिर भी भोग नहीं लगाया।
तब कर्माबाई ने भगवान से कहा भगवान जब तक आप भोग नहीं लगाएंगे, तब तक मैं भी नहीं खाउंगी, आप के साथ साथ मै भी भूखी रहूंगी। ऐसा कहकर वह भगवान से नाराज होकर बैठ गयी, दोपहर बीत गयी श्याम होने को आई लेकिन भगवान की तरह कर्माबाई ने भी कुछ नहीं खाया। आख़िरकार कर्मा की जिद देखकर भगवान की मूर्ति से आवाज आयी, अरे कर्मा तुमने पर्दा तो किया ही नहीं, मैं ऐसे कैसे भोग लगाऊंगा। यह सुनकर कर्माबाई ने अपनी ओढ़नी का पर्दा किया और उसी की छाया में भगवान श्री कृष्ण ने बाजरे के खीचड़े का भोग लगाया और पूरी थाली खली हो गयी।
कर्माबाई ने देखा और कहा हे भगवान इतनी सी बात थी तो पहले बता देते सारे दिन खुद भी भूखे रहे और मुझे भी भूखा रखा, इसके बाद भगवान को भोग लगाकर कर्मा ने भी भोजन किया। इस प्रकार अब यह कर्माबाई का नित्य का नियम बन गया, कर्मा रोज सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले भगवान के लिए भोग बनती और भोग की थाली भगवान के सामने रखकर पर्दा लगाकर बैठ जाती और कुछ देर में देखती तो थाली पूरी खाली हो जाती, यह देखकर कर्मा बहुत खुश हो जाती और अपने दूसरे कामो में लग जाती।
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कर्माबाई का यह भाव था की भगवान को सुबह जल्दी ही भूख लग जाती है, इसलिए वह सुबह सवेरे जल्दी उठकर किसी विधि विधान में पड़े बिना सबसे पहले भगवान के लिए भोजन बनाती और बड़े प्रेम से भगवान को भोजन खिलाती फिर भगवान को भोजन खिलने के बाद निश्चिंत होकर स्नान आदि करती और घर के दूसरे काम करती, इस प्रकार यह क्रम लगातार चलता रहा।
कुछ दिनों के बाद कर्माबाई के पिता तीर्थयात्रा करके घर लौट आये, पिता के आने पर कर्मा ने उन्हें बताया की पहले दिन जब उसने भगवान कृष्ण को भोग लगाया, तो कैसे भगवान ने सारे दिन नखरे किये और शाम को जाकर खिचड़ा खाया और अब तो भगवान कृष्ण सुबह जल्दी भोग लगते ही पूरी थाली साफ़ कर देते है। यह सुनकर कर्माबाई के पिताजी आश्चर्यचकित रह गए, और कृष्ण भक्त पिता को कर्मा की सरल प्रेमभक्ति और भगवान श्री कृष्ण की कृपा को समझते देर नहीं लगी।
कर्मा के पिताजी से सोचा जिस भगवानको प्राप्त करने वो तीर्थ यात्रा करने गए थे, वे भगवान उनके घर में ही विराजमान है, और उनकी पुत्री के हाथों से रोज भोग लगाते है। मन में ऐसा सोचकर वे कर्माबाई को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करके अपने आप को धन्य समझने लगे। उन्होंने कर्माबाई से कहा, की पुत्री आज से तुम ही भगवान की सेवा करना और रोज भगवान को अपने हाथों से भोग लगाना। ऐसा सुनकर कर्माबाई बहुत प्रसन्न हुई और वह रोज इसी प्रकार सुबह जल्दी उठकर अत्यंत प्रेम भाव से भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाने लगी, इस प्रकार यह उसका रोज का नियम बन गया।
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कुछ वर्ष बाद कर्माबाई के पिताजी देवलोकगमन कर गए अब कर्मा अकेली रह गयी, इसलिए कर्मा का घर में मन नहीं लगता था। इसलिए कर्मा अपने घर से भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर अपने गांव कालवा को छोड़ कर तीर्थ यात्रा पर निकल गयी। भारत में अलग अलग तीर्थो के दर्शन करते-करते कर्माबाई उड़ीसा के जगन्नाथपुरी पहुंच गयी। अब कर्मा ने जगन्नाथपुरी में ही निवास करने का निश्चय किया।
जगन्नाथपुरी में कर्मा ने एक छोटी सी कुटिया बना ली और उसमे निवास करने लगी। अब कर्मा रोज अपने नियम के अनुसार सुबह सवेरे जल्दी उठकर भगवानश्री कृष्ण के लिए बड़े प्रेम से खिचड़ा बनती और भगवान को थाली में भोग लगाती, कुछ देर में भगवान खिचड़ा खा लेते और थाली साफ़ हो जाती, इसके बाद कर्मा अपने स्नान ध्यान आदि नित्य कर्मो में लग जाती और इसी प्रकार यह क्रम निरंतर चलता रहा।
एक दिन कर्माबाई के भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाने के बाद एक छोटा सा बालक उनके पास आया और उनसे बोला, माँ कुछ खाने को है बड़ी भूख लगी है। कर्माबाई ने कहा, हाँ बेटा मैंने अभी-अभी खिचड़ा बनाया है, आजा बैठ जा तू भी खिचड़ा खा ले। यह कह कर कर्माबाई ने बड़े प्यार से उस बालक को खिचड़ा परोसा और बालक ने भी बड़े ही चाव से खिचड़ा खाया। उस बालक के रूप के स्वयं भगवान जगन्नाथ कर्माबाई के हाथ से बना खिचड़ा खाने साक्षात् पधारे थे।
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बालक ने जल्दी से खिचड़ा खा लिया और उनसे कहा माँ खिचड़ा बहुत अच्छा बना है, मैं कल भी खिचड़ा खाने आ जाऊं, कर्माबाई ने कहा कल क्या बेटा मैं तेरे लिए रोज खिचड़ा बनाकर रखूंगी तू रोज खिचड़ा खाने आ जाया कर। बालक ने कहा ठीक है माँ, मैं रोज खिचड़ा खाने आऊंगा, यह कह कर बालक चला गया। अगले दिन से वह बालक रोज सुबह सवेरे कर्माबाई के पास खिचड़ा खाने आने लगा।
कर्माबाई भी रोज अपने नियम से सुबह सवेरे जल्दी उठकर भगवान श्री कृष्ण के लिए खिचड़ा बनती और भगवान के सामने थाली रखती फिर भगवान खीचड़े का भोग लगाते और उसके कुछ ही देर बाद वह बालक आ जाता, फिर कर्माबाई उसे भी बड़े प्रेम से खिचड़ा खिलाती और उसके बाद अपने स्नान ध्यान आदि दैनिक कार्यो में लग जाती और यह क्रम इसी प्रकार चलता रहा।
एक दिन कर्माबाई की कुटिया के पास एक साधु आया, बातों ही बातों में उसे पता चला की कर्माबाई बिना स्नान ध्यान किये बिना चौका-बर्तन किये भगवान श्री कृष्ण के लिए खिचड़ा बनती है और भोग लगाती है। उसने कर्माबाई से कहा, स्नान किये बिना भगवान की पूजा करने और भोग लगाने से पाप लगता है, इसलिए उसने कर्माबाई को स्नान करके पूरे विधि-विधान से पूजा करके भोग लगाने को कहा।
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साधु से ऐसा सुनकर भोली-भाली कर्मा अगले दिन से सुबह जल्दी उठकर स्नान करके खिचड़ा बनाने लगी और विधि विधान से पूजा करके भोग लगाने लगी, यह सब करने में कर्माबाई को बहुत देर लग जाती, लेकिन वह बालक तो रोज सुबह अपने समय से आ जाता और कर्मा से कहता, माँ मुझे भूख लगी है, मुझे जल्दी खिचड़ा दे माँ, जल्दी कर माँ जल्दी कर, और कर्मा उससे कहती थोड़ी देर रुक जा बेटा अभी देती हूँ, बस थोड़ी देर रुक जा।
जब कर्मा भगवान श्री कृष्णा को भोग लगाकर बालक को खिचड़ा खाने को देती, तो वह बालक उसे बहुत ही शीग्रता से खाकर हाथ मुँह साफ़ किये बिना ही जल्दी से उठकर भाग जाता और यह क्रम कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। इन्ही दिनों में भगवान श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में सुबह के समय भगवान की मूर्ति के मुख पर खिचड़ा लगा हुआ रहता।
यह देख कर भगवान जगन्नाथ की सेवा में रहने वाले पुजारी, जो स्वयं बहुत बड़े कृष्ण भक्त थे, वह सोचते आजकल ये भगवान श्री जगन्नाथ जी के मुख पर खिचड़ा कैसे लगा रहता है, हम तो इन्हें खीचड़े का भोग नहीं लगते, तो फिर यह खिचड़ा कहाँ से आता है। कुछ दिनों तक लगातार भगवान श्री जगन्नाथ जी के मुख पर खिचड़ा लगा देखने पर पुजारी इसे भगवान की लीला मानते है, और समझ जाते हैं, की भगवान रोज कहीं से खिचड़ा खाकर आते है। भगवान की लीला को जानकर वह मन ही मन भगवान श्री जगन्नाथ जी से पूछते है, की कहाँ से खिचड़ा खा कर आते हो प्रभु, हमें भी तो बताओ।
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उसी रात भगवान श्री जगन्नाथ जी पुजारी के सपने में आते है, और उनसे कहते है, की मेरी एक भक्त है कर्माबाई जो जगन्नाथपूरी में ही रहती है। वह रोज सुबह सवेरे मेरे लिए बाजरे का खिचड़ा बनती है, और बड़े प्रेम से मुझे भोग लगाती है, और मैं भी रोज सुबह जल्दी कर्माबाई के पास खिचड़ा खाने जाता हूँ, मुझे उसके हाथ का बना खिचड़ा बहुत पसंद है।
परन्तु कुछ दिन पहले कर्मा के पास एक साधु आया और कर्मा को स्नान ध्यान करके विधि विधान से पूजा करके भोग लगाने को कह गया। इसलिए आजकल वह विधि विधान से पूजा करके भोग लगाती है, और उसके बाद मुझे खिचड़ा खिलाती है, ये सब काम करने में उसे बहुत देर लग जाती है और मुझे खीचड़े के लिए इंतज़ार करना पड़ता है और भूख का कष्ट भी सहन करना पड़ता है। जब तक मैं खिचड़ा खाता हूँ, तब तक यहाँ मंदिर में भक्तगण आने लगते है, इसलिए आजकल मुझे खिचड़ा खाकर मुँह हाथ धोये बिना ही जुठे मुँह ही उठकर भागकर यहाँ आना पड़ता है।
भगवान श्री जगन्नाथ जी से यह जानकर पुजारी जी ने अगले दिन उस साधु की खोज करावाई और उस साधु को बुलाकर उसे सारी बात बताई, पुजारी से यह सब जानकर वह साधु घबराया हुआ कर्माबाई के पास पंहुचा, और उनसे कहा की आप पहले की ही तरह सुबह जल्दी ही भगवान को खीचड़े का भोग लगाया करें, आप के लिए किसी नियम या विधि विधान से पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। साधु से यह सुनकर कर्माबाई अगले दिन से पहले की ही तरह भगवान श्री कृष्ण को खीचड़े का भोग लगाने लगी और उस बालक को भी बड़े प्रेम से खिचड़ा खिलाने लगी। यह क्रम कई वर्षो तक चलता रहा और एक दिन कर्माबाई इस संसार चक्र को छोड़कर प्रभु के धाम चली गयी।
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उस दिन जगन्नाथ पूरी के मंदिर में भगवान श्री जगन्नाथ जी के श्री विग्रह के नयनों से अश्रु निकल रहे थे, यह देखकर मंदिर के सभी पुजारी और जगन्नाथपूरी के राजा भी मंदिर में उपस्थित हो गए और प्रभु से विनती करने लगे की हे प्रभु क्या हम से कोई भूल या अपराध हुआ है, जिसके कारण जगत के पालनहार की आँखों से आंसू निकल रहे है।
उसी दिन, रात में पुजारी जी और जगन्नाथपूरी के राजा के स्वप्न में भगवान श्री जगन्नाथ जी ने कहा की आज माँ कर्माबाई इस लोक से विदा हो गयी और मुझ में विलीन हो गयी, परन्तु अब मुझे रोज सुबह सवेरे बाजरे का खिचड़ा कौन खिलायेगा। अगले दिन जगन्नाथपुरी के राजा ने मंदिर के सभी पुजारियों और संतो से राय ली और यह आदेश जारी किया की आज से भगवान श्री जगन्नाथ जी को सुबह सवेरे सबसे पहले माँ कर्माबाई के नाम से बाजरे के खीचड़े का का भोग लगाया जायेगा, जिससे भगवान को माँ कर्माबाई की कमी कभी महसूस न हो।
इसलिए उस दिन से लेकर आज तक भगवान श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में श्री जगन्नाथ जी के विग्रह को छप्पन भोग से पहले बाल रूप में बाजरे के खीचड़े का भोग लगाया जाता है और इसे बाल भोग कहा जाता है, सैकड़ों सालों के बाद भी श्री जगन्नाथ पूरी मंदिर में माँ कर्मा की याद में यह प्रथा आज भी वैसी की वैसी चली आ रही है।
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