छिलकों का दान करने वाले कंजूस सेठ की हास्य कहानी - Hindi Kahaniyan हिंदी कहानियां 

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रविवार, 30 जून 2024

छिलकों का दान करने वाले कंजूस सेठ की हास्य कहानी

छिलकों का दान करने वाले कंजूस सेठ की हास्य कहानी 


एक समय की बात है, एक बहुत कंजूस सेठ था। उसके पास बहुत पैसा होने के बाद भी वह एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जीता था, न तो वह खुद कुछ खर्च करता था और ना ही अपने परिवार वालों को खर्च करने के लिए देता था। धर्म के नाम पर भी उसकी जेब से कुछ नहीं निकलता। सेठजी की कंजूसी के कारण उसके परिवार वाले भी बहुत परेशान रहते थे। 


एक बार वह कंजूस सेठ किसी महात्मा का सत्संग सुनने चला गया, सत्संग में महात्मा जी दान की महिमा बता रहे थे। दान की महिमा सुनकर सेठजी को लगा, कि मुझे भी कुछ ना कुछ दान अवश्य करना चाहिए। सेठजी, महात्मा जी से जाकर बोले, महात्मा जी आपकी कथा मुझे बहुत अच्छी लगी, आपकी कथा सुनकर मुझे भी दान करने की  प्रेरणा हो रही है। लेकिन मैं जिस भी वस्तु का दान करने की सोचता हूं, तो मुझे लगता है, यह तो मेरे बहुत काम की वस्तु है, इसे कैसे दान किया जा सकता है। इस प्रकार मेरी दान करने में रूचि ही नहीं होती। तो क्या बिना काम की वस्तु का दान करने से भी मुझे दान का पुण्य मिल जाएगा।

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महात्मा जी को सेठ पर दया आ गई, उन्होंने सोचा यह बेचारा बड़ा कंजूस है, इसकी कुछ दान करने की इच्छा नहीं होती, फिर भी यह दान करना चाहता है, तो इसकी मदद करनी चाहिए, जिससे इसकी कुछ ना कुछ दान करने की आदत तो पड़े। ऐसा सोचकर महात्मा जी बोले, हां सेठजी यदि कोई वस्तु आपके काम की नहीं है, तो आप उसका भी दान कर सकते हैं, मैं आपको संकल्प दिलवा दिया करूंगा और आप मुझे वह वस्तु दान कर दीजिएगा। 


सेठजी बहुत सोच विचार कर बोले, महात्मा जी बुरा मत मानना, हमारे घर में सुबह शाम सब्जी बनती है, रोटी बनती है। तो सब्जी का छिलका निकलता है, और आटे का चोकर निकलता है, वह हमारे किसी काम का नहीं होता, तो क्या आप वह छिलका और चोकर का दान स्वीकार करेंगे। महात्मा जी बोले, ठीक है सेठजी, मैं रोज सुबह आपके घर के सामने से तो निकलता ही हूं, मैं आपसे सब्जी के छिलके और आटे के चोकर का दान ले लिया करूंगा। यह सुनकर वह कंजूस सेठ बहुत खुश हो गया। 


अगले दिन से प्रतिदिन महात्मा जी सेठ जी के घर छिलकों का दान लेने आने लगे, महात्मा जी रोज सुबह सेठजी को संकल्प दिलवाते और उनसे छिलकों का दान ले लेते। वह कंजूस सेठ भी बहुत खुश होता की चलो यह छिलका तो वैसे भी फेंकना पड़ता, इससे अच्छा तो यह महात्मा जी ही ले जाते हैं और मुझे पुण्य भी मिल जाता है। महात्मा जी सब्जी के छिलके और आटे का चोकर ले जाकर गऊ माता को खिला देते, इससे उनका भी काम बन जाता, कई महीनो तक ऐसा ही चला रहा। 


भगवान जो सृष्टि के कण कण में बसते हैं, वह यह सब देख रहे थे। एक दिन भगवान को मजाक सूझी और उन्होंने उस कंजूस सेठ के घर एक बिल्ली भेज दी। अब वह बिल्ली रोज सेठजी को और उनके परिवार वालों को परेशान करने लगी, कभी वह बिल्ली रसोई में जाकर दूध पी जाती, कभी खाने पीने का सामान गिरा देती, कभी उनके घर में मल त्याग कर देती, इस प्रकार वह बिल्ली उन सभी को किसी न किसी तरह से परेशान करने लगी, घर के सभी लोग उस बिल्ली से बहुत दुखी हो गए। 


एक दिन सेठजी की पत्नी छत पर कपड़े सुखा रही थी, तभी उसने देखा वह बिल्ली रसोई में जा रही है, उसने वहीं से बिल्ली के ऊपर बाल्टी फेंकी। सेठजी उसी समय वहां से से गुजर रहे थे, वह बाल्टी सीधे सेठजी के सर पर जा लगी, बाल्टी की चोट से सेठजी के सिर पर रूमा हो गया। सेठजी बोले अरि भागवान मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, तुम मुझ पर बाल्टी क्यों फेंक रही हो। सेठानी बोली, मैंने बिल्ली को उधर से जाते देखा था, मैंने उसी पर बाल्टी फेंकी थी, लेकिन वह आपको जा लगी। 


इसी प्रकार एक दिन सेठ जी की पुत्र वधू रसोई में रोटी बना रही थी, तभी उसने उस बिल्ली को बाहर घूमते देखा। सेठजी की पुत्रवधू ने बिल्ली को मारने के लिए पूरी ताकत से उस पर बेलन फेंका। संयोग से सेठजी भी उसी बिल्ली को मारने जा रहे थे, तभी पीछे से वह भारी बेलन पुरी ताकत से सेठजी की पीठ पर जा लगा। सेठजी जोर से कराह उठे, यह देखकर सेठजी की पुत्रवधू घबरा गई, सेठजी की चीख सुनकर घर के सभी लोग इकट्ठे हो गए। सेठजी की पुत्रवधू बोली मैंने तो बिल्ली को मारने के लिए उस पर बेलन फेंका था, परंतु वह आपको जा लगा, इसके लिए मैं क्षमा चाहती हूं। सेठजी सोचने लगे कि यह सब घर वाले बिल्ली को मारने के चक्कर में कहीं मुझे ही ना मार डालें। 


एक दिन सुबह के समय वह बिल्ली सेठ जी के घर में चुपके से बैठी थी, सेठजी ने उस बिल्ली को देख लिया। सेठजी पहले से ही उस बिल्ली पर खिजे हुए थे, सेठजी ने सोचा इस बिल्ली ने हमें बहुत परेशान किया है, आज इस बिल्ली का काम तमाम किए देता हूं, यह सोचकर सेठजी ने एक बड़ा सा पटिया उठाकर उस बिल्ली के ऊपर दे मारा। वह बिल्ली वहीं पर बेहोश हो गई, लेकिन सभी ने सोचा वह बिल्ली मर गई। उसी समय वह महात्मा जी भी छिलकों का दान लेने आ गए, महात्मा जी और सभी लोगों ने देखा कि सेठ जी ने बिल्ली को मार दिया। 


शास्त्रों में बिल्ली को मारना बहुत बड़ा पाप बताया गया है, यह सब देखकर महात्मा जी बोले, राम राम राम सेठजी आपसे तो अनर्थ हो गया, आपके हाथों से बिल्ली मर गई, यह तो बहुत बुरा संकेत है, बिल्ली को मारने वाले को घोर नर्क की प्राप्ति होती है। यह सब सुनकर सेठ की घबरा गए और महात्मा जी से बोले महात्मा जी इसका कोई प्रायश्चित हो तो बताइए। महात्मा जी बोले इस घोर पाप का प्रायश्चित तो पोथी में देखकर ही बताना पड़ेगा। 


ऐसा कहकर महात्मा जी ने अपनी पोथी निकाली और उसमे देखने लगे। पोथी में देख कर महात्मा जी ने बताया, सेठजी इस महापाप के प्रायश्चित के लिए आपको एक मण आटा, एक मण चावल, एक मण दाल, एक मण घी, एक मण तेल, एक मण गुड और बिल्ली के वजन के बराबर सोना दान करना पड़ेगा। यह सब सुनकर वह कंजूस सेठ काँप गया। वह महात्मा जी से बोला महात्मा जी एक जरा से बिल्ली के लिए इतना सब कुछ दान करना पड़ेगा, महात्मा जी बोले यदि आपको घोर नर्क की यातना से बचाना है, तो इतना सब तो दान करना ही पड़ेगा। आख़िरकार मन मार कर सेठजी ने दान करने की हामी भर दी। 


उसी समय उस बिल्ली को उठाकर उसका वजन किया गया, सारे सामान की सूची बनाई गयी, इसके बाद सेठजी दान के सामान की खरीदारी करने बाजार चले गए। सेठजी महात्मा जी के बताए अनुसार सब सामान खरीद कर महात्मा जी के घर पहुंचे और संकल्प लेकर वह सब वस्तुएं उनको दान कर दी। सेठजी जब वापस घर लौट आए तो उन्होंने देखा वह बिल्ली अभी तक वही पड़ी है। उन्होंने सोचा इस मनहूस बिल्ली की वजह से आज इतना बड़ा नुकसान हो गया, इस बिल्ली को उठाकर बाहर फेंक देता हूं। जैसे ही सेठजी ने उस बिल्ली को उठाया, उस बिल्ली को होश आ गया, और वह म्याऊं म्याऊं करती हुई सेठ जी के हाथों से छूटकर भाग गई। 


एक तो इस बिल्ली ने लाखों का खर्चा करवा दिया, ऊपर से यह बिल्ली मरी भी नहीं, ऐसा सोचकर सेठजी एक बार फिर से कराह उठे। 


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