जब श्री राधा रानी बेटी बनकर चूड़ी पहनने आई हिन्दी - Kahaniya
यह कहानी है बरसाना की जहां राज-राजेश्वरी श्री राधा रानी जी का जन्म हुआ था। बरसाना में श्री राधा जी का एक मंदिर है, जिसके पास एक सेठ जी रहा करते थे। सेठ जी बहुत ही संपन्न थे, उनके पास सब कुछ था, आलीशान दुकान, भव्य भवन, तीन बेटे और तीन बहुएं। सेठ जी यूं तो हर तरीके से साधन संपन्न थे, लेकिन फिर भी उनके मन में बड़ा दुख था। उन्हें हमेशा लगता था, कि काश उनकी एक पुत्री भी होती। उन्हें लगता था अगर उनके एक पुत्री होती, तो वे अपने मन की सारी बात अपनी पुत्री को बताते और पुत्री को बहुत दुलार करते।
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कुछ समय पहले सेठ जी की पत्नी का देहांत हो गया था, इसलिए सेठ जी बहुत अकेलापन महसूस करते थे। सेठजी हमेशा अपने घर के पास स्थित मंदिर में श्री राधा जी के दर्शन करने जाया करते थे। एक दिन जब सेठजी मंदिर में श्री राधा जी के दर्शन करने गए, उस दिन मंदिर में एक संत पधारे थे। सेठजी को कुछ उदास देख संत ने सेठजी से पूछा, उदास क्यों हो बेटा।
सेठजी बोले, महाराज मेरे कोई बेटी नहीं है, इसलिए मैं उदास हूं। संत मुस्कुराये और बोले यदि जीवन में किसी का अभाव है, तो उसकी जगह भगवान को बिठा लेना चाहिए। सेठजी बोले, महाराज मेरे तो कोई बेटी नहीं है, तो मुझे क्या करना चाहिए। संत बोले, अरे सेठ, जब तुम्हें बरसाने का वास मिला है, तो तुम बरसाने की बेटी श्री राधा जी को ही अपनी बेटी क्यों नहीं मान लेते।
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संत की यह बात सेठजी को बहुत पसंद आई। उसी दिन सेठजी ने श्री राधा जी का एक बड़ा चित्र मंगवाया और उसे अपने कमरे में लगा लिया। अब तो सेठजी का जीवन ही बदल गया। वे उठते बैठते सोते जागते श्री राधा जी को अपनी बेटी मानकर उनसे बातें करने लगे, उन्हें अपनी पुत्री को हर बात बताने में बहुत आनंद आता था।
सेठजी की राधा जी में ऐसी लगन लगी की जब भी वे दुकान जाते तो श्री राधा रानी को भोग लगाकर प्रसाद पाकर ही जाते थे। श्याम को लौटते तो राधाजी को प्रणाम करते, उनसे बातें करते और भोग लगाकर फिर प्रसाद ग्रहण करते, और हर समय श्री राधे श्री राधे संकीर्तन किया करते थे, और हर समय प्रसन्नचित् रहा करते थे। जब भी सेठ जी से कोई उनका परिचय पूछता तो सेठ जी कहते "तीन बहु बेटे हैं घर में सुख सुविधा है पूरी, संपत्ति भरी भवन में रहती नहीं कोई मजबूरी, कृष्ण कृपा से जीवन पथ में आती ना कोई बाधा, मैं बड़भागी पिता हूं मेरी बेटी है श्री राधा"।
एक दिन सेठजी के घर में चूड़ी पहनाने वाली मनिहारीन आई। तीनों बहुओं ने बारी-बारी से जाकर मनिहारीन से चूड़ियां पहन ली। श्री राधा जी को लगा कि आज हमारे पिता के घर में चूड़ी पहनाने वाली आई है, तो मैं भी जाकर चूड़ियां पहन लेती हूं। जैसे ही तीनों बहुएं चूड़ियां पहन कर गई, श्री राधा जी प्रकट हो गई, मनिहारीन ने जब राधा जी का स्वरूप देखा, तो वह उन्हें देखते ही रह गई। राधा जी बोली मुझे भी चूड़ी पहनाओ। मनिहारीन ने समझा इनके घर में कोई मेहमान आया होगा, यह सोचकर मनिहारीन ने राधा जी को भी चूड़ियां पहना दी।
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श्री राधा जी चूड़ियां पहन कर एक ओट में जाकर अंतर्ध्यान हो गई। सभी को चूड़ियां पहना कर मनिहारीन हमेशा की तरह चूड़ियों का पैसा लेने सेठजी की दुकान पर चली गई। मनिहारीन को देखते ही सेठ जी बोले, घर पर चूड़ियां पहनाने गई थी, यह लो तुम्हारे पैसे, सेठ जी ने मनिहारी को हर बार के जितने ही पैसे दे दिए। मनिहारीन बोली, सेठ जी इस बार में ज्यादा पैसे लूंगी, मैंने आपके घर में तीन जनों को नहीं बल्कि चार जनों को चूड़ियां पहनाई है।
सेठ जी बोले, हमारे घर में तीन बहुओं के अलावा चौथी तो कोई है ही नहीं चूड़ी पहनने वाली। मनिहारीन बोली यह मैं नहीं जानती, लेकिन मैंने तो चूड़ी चार को पहनाई है। सेठ जी बोले कि बाकी के पैसे में पहले घर में पता करूंगा उसके बाद दूंगा। मनिहारीन बोली, ठीक है सेठ जी, आप घर में पता कर लीजिएगा। यह कहकर मनिहारीन चली गई।
शाम को सेठ जी घर पर पहुंचे, उन्होंने घर में मनिहारिन के बारे में पूछा। उनकी बहुओं ने कहा, कि केवल हम तीनों ने ही चूड़ियां पहनी थी। सेठ जी बोले, मैं भी कहूं की चौथा तो कोई है ही नहीं हमारे घर में जो चूड़ियाँ पहने। इस प्रकार सेठजी यह बात भूल गए और अपने नित्य काम में लग गए। सेठजी राधा-राधा बोलते बोलते श्री राधा जी को प्रसाद का भोग लगाकर और भोजन करके सो गए।
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जब सेठजी को नींद आ गई, तो उनके स्वप्न में श्री राधा जी प्रकट हो गई। राधाजी बहुत उदास थी, उनकी आँखों में आँसू थे। सेठजी ने पूछा बेटी उदास क्यों हो। श्री राधा जी बोली, आज मेरा मन बहुत दुखी है। मैंने आज अपने पिता का घर समझकर यहां उस मनिहारिन से चूड़ियां पहनी थी, परंतु पिताजी आपने उस मनिहारिन को मेरी चूड़ियों का मोल नहीं चुकाया। पिता जी, आपने मुझे बेटी तो बना लिया, परंतु आपको मेरी याद नहीं आयी। आपने मुझे भुला दिया, इससे मैं बहुत दुखी हूं। यह सुनकर सेठजी सपने में ही रोते हुए बोले, बेटी, मुझे क्षमा कर दो, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।
सेठजी तुरंत नींद में से उठ बैठे, उनकी आंखों से आंसू आ रहे थे। सेठजी ने तुरंत तिजोरी में से पैसे निकाले और मनिहारीन के घर की तरफ चल दिए। सेठ जी ने मनिहारीन के घर का दरवाजा खटखटाया। मनिहारीन ने दरवाजा खोला, सेठ जी आप, इतनी रात को, सेठ जी को अपने घर पर देखकर मनिहारीन चौंक गई।
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सेठ जी के नेत्रों में आंसू भरे थे, सेठ जी बोले, तुम्हारे जैसा बड़भागी कोई नहीं है। मनिहारीन बोली, सेठ जी क्या हुआ। सेठ जी बोले, मैंने राधा जी को अपनी बेटी बनाया, परंतु मैंने उन्हें कभी अपने नेत्रों से नहीं देखा, लेकिन तुमने आज उन्हीं राधा जी को अपने हाथों से चूड़ियां पहनाई है। आज तुम्हारे जितना भाग्यशाली इस धरती पर कोई नहीं है। मैं तुम्हें अपनी पुत्री की पहनी हुई चूड़ियों का मूल्य चुकाने आया हूं। यह कहकर सेठ जी ने रुपयों से भरी हुई थैली मनिहारी के सामने रख दी, और कहा इसमें से जो भी लेना हो वो ले लो।
जब मनिहारीन ने सुना कि स्वयं राधा जी उससे चूड़ियां पहनने आयी थी, तो उसकी आंखों से भी आंसुओं की धारा बह निकली। मनिहारीन बोली, सेठजी मैं राधा रानी की चूड़ियों के पैसे आप से कैसे ले सकती हूं। राधा रानी तो इस बरसाने की बिटिया है, और मैं बिटिया की चूड़ी के पैसे आपसे ना लूंगी। परन्तु सेठजी नहीं माने, सेठ जी ने रुपयों से भरी हुई थैली मनिहारीन के घर पर रखी और वहां से सीधे श्री राधा जी के मंदिर चले गए। उस दिन के बाद सेठजी ने सब कुछ छोड़कर सन्यास ले लिया और अपना शेष जीवन राधा जी के मंदिर में राधा जी की भक्ति करते करते बिता दिया।
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